मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

गणतंत्र दिवस परेड के लिए तैयार है 'कावड'


हरशिव शर्मा निर्मित झांकी का चयन
मूमल नटवर्क, जयपुर। वर्ष 2014 के गणतंत्र दिवस परेड  के लिए जयपुर के नामी कलाकार हरशिव शर्मा द्वारा निर्मित झांकी का चयन हुआ है।  इस बार शर्मा ने उदयपुर की 'कावड' को अपना विषय बनाया है।  पूर्व के वर्षों में लगातार हरशिव शर्मा द्वारा तैयार झांकियां दिल्ली के जनपथ पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने में कामयाब होती रही हैं। पिछले साल इनकी बूंदी के महल और चित्रशाला की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड़  में द्वितीय पुरस्कार का सम्मान मिला था।
क्या होती है 'कावड'
आम, अडूसा और सागवान की लकडी से बनी एक अलमारी नुमा आकृति को कावड  कहा जाता है। दो हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी इस अनूठी कावड कला का उद्भव उज्जैन के विक्रमादित्य काल में होना बताया जाता है। कालान्तर में यह कला दक्षिण राजस्थान के मेवाड क्षेत्र में लकडी का काम करने वाले कलाकारों ने अपना ली।
 'कावड' की विशेषता यह है कि इस अलमारी के कपाट परत दर परत खुलते जाते हैं और हर कपाट के खुलने के साथ ही उन पर अंकित चित्र कथाएं भी खुलती जाती है। कावड  पढने वाले इन्ही चित्रों के आधार पर सम्पूर्ण कथा सुनाते जाते है। लकडी की कावड में ऐतिहासिक घटनाओं के एक-एक प्रसंग देखने वालो के सामने इस तरह से आते है जैसे वह किसी रंगमंच पर कोई नाटक देख रहे हो। जिसमें रामायण एवं महाभारत की पौराणिक कथाओं को चित्रो के माध्यम से एक साथ देखा जा सकता है। आम तौर पर एक बड़ी कावड आठ फीट ऊंची और बीस फुट चौडी हो सकती है। 4 से 16 कपाट तक खुलने वाली कावड बनी हंै। सबसे छोटी कावड माचिस की डिब्बी के आकार की हो सकती है।  जिसमें बारीक चित्रों से उत्कृष्ट कला उकेरी हुई देख कर  कला के पारखी दर्शक उसे देख चकित हुए बिना नहीं रह सकते।
रामायण, महाभारत और बाईबल के अलावा भगवान गणेश, महावीर जी, प्रभु यीशू, स्वामी विवेकानन्द, आदि शंकराचार्य, मुगल-दरबार, दुर्गादास राठौड, आचार्य महायज्ञ, दशामाता के साथ ही पंचतंत्र, पंचकुला, सहित अनेक लोक प्रचलित दंत कथाओं पर कावडें बनाई जाती है। अब तो दहेज प्रथा, पोलियों, साक्षरता आदि कार्यक्रमों पर भी कावड बनती है।

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