शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

Madhubani painting to be patented

The famous Madhubani painting of Bihar is now an exclusive brand, as it has been registered under the provisions of Global Indications (GI) Act for patenting. "The Madhubani painting of Bihar is the first item to be registered under the GI Act for patenting," Abhijit Das, representative of United National Conference on Trade and Development (UNCTAD)said । For ages, rural people, mostly women, of Mithila in Bihar have developed their own tradition of art, popularly known as Madhubani paintings and named after Madhubani district. This painting tradition dates back to the seventh century A.D.Traditionally, Madhubani paintings were made on the eve of certain rituals and ceremonies such as pujas (worships), vratas (fasts) or weddings. But in the last few decades, Madhubani paintings have been popularised the world over by master painters. Das said after Madhubani paintings, the famous Shahi litchi of Muzaffarpur could become an exclusive brand of Bihar soon. "The process is underway for GI registration of Shahi litchi too," he said.Bihar is also aiming to register tassar silk and aromatic Katarni rice of Bhagalpur under the provisions of GI Act for patenting. Das was here to attend a workshop on "Geographical Indications for Regional Development: Identifying Potential GIs for Bihar".Once the Bihar government gets exclusive right to the brand name Shahi litchi, no one else will be able to use it to market the fruit in India or abroad. Buyers anywhere would know that a litchi, with this brand name, has to be one of the famous litchis of Muzaffarpur, he said.

The horticulture department officials have prepared documents under the Geographical Indications clause of International Property Rights laws to prove their case that the Shahi litchi is unique and it grows only in Muzaffarpur. They expect the registration of the brand name will benefit farmers, who will gain access to more markets and get better prices.About 70 percent of all litchis produced in India are grown in Bihar. The number of farmers in the state growing litchis has increased in the last decade, especially in Muzaffarpur district.But in a recent report, the World Bank noted that litchis were being grown in only about 10 percent of the 2,000-odd orchards in Muzaffarpur. Countries that import litchis from India are the Netherlands, the United Arab Emirates, Saudi Arabia, Lebanon, Canada, Russia and Yemen.

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

अब सार्क भी पेंटिंग प्रदर्शनी के पथ पर

सार्क ने अपने सदस्य देशों के सहयोग से नेपाल की राजधानी काठमांडू में गुरुवार १८ दिसम्बर २००८ से अपनी पहली पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन किया है। इस प्रदर्शनी में साऊथ एशियन रीजन के आठ देशो की कला प्रर्दशित की गई है।
सार्क सचिवालय में आयोजित, भारतीय एम्बेसी के सहयोग से लगाई गई इस प्रदर्शनी का उद्घाटन नेपाल के वाइस प्रेजिडेंट परमानन्द झा ने किया। इसमे १२ कलाकृतियों को प्रदर्षित किया गया है, जिसमें १२ अकेले भारत की हैं।इसके अलावा ४ पाकिस्तान कि, दो अफ्गानितान कि, दो बांग्लादेश की, तीन श्रीलंका की तथा एक-एक नेपाल और भूटान की है।
इस शो के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले भारतीय कलाकार हैं- अनुपम सूद, अखिलेश, अंजना मेहरा मनीषा पुष्कल, गोपी गजवानी, जतिन दास, बंदीप सिंह, मनीषा गेरा बस्वामी, जमशेद, योगेन्द्र त्रिपाठी तथा एस हर्श्वसर्धन।
इस अवसर पर नेपाल में भारत के राजदूत राकेश सूद ने कहा कि, सार्क एक आर्थिक प्लेटफार्म है । यह प्रदर्शनी सार्क देशों के बीच सांस्कृतिक गतिविधियों का तो आदान- प्रदान करेगी ही, इन देशों के बीच व्यक्ति से व्यक्ति का रिश्ता भी मजबूत होगा।
एक बेस्ट टेलेंटेड चित्रकार का चयन किया जाएगा, जिसकी कला का प्रदर्शन पुरे दो दिन तक आने वाली सार्क प्रदर्शनियों में किया जायेगा। यह प्रदर्शनियां सार्क देशों में रोटेशन के आधार पर लगे जाएँगी। अगला प्रदर्शन श्री लंका कि राजधानी कोलम्बो में लगेगी।

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

मिनिएचर पेंटिंग के राष्ट्रीय पुरस्कारों में कलाकारी !

मिनिएचर पेंटिंग के राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए कलाकारों का चयन हो गया है। यह पुरस्कार महामहिम राष्टपति जी के हाथों प्रदान किए जायेंगे । इसके लिए राजस्थान के दो कलाकारों के नाम सामने आए है। जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में प्रायः जुटने वाले कलाकारों में इन पुरस्कारों की खासी चर्चा रही।
चर्चा का सूत्रपात जय विश्वकर्मा परम्परागत शिल्प कला विकास समिति के संस्थापक अध्यक्ष आसाराम मेघवाल ने किया है। उनका कहना है कि पुरस्कार के लिए चुने गए लोग सम्बन्धित कला में अपेक्षाकृत कम अनुभवी और दक्ष माने जाते है, जबकि उनकी तुलना में अधिक वरिष्ट और अनुभवी कलाकारों की कृतियाँ पुरुस्कार की दौड़ में शामिल थीं। चर्चा में उनके साथ कुछ वरिष्ट मिनिएचर पेंटिंग आर्टिस्ट भी थे, जिनमे बजरंगलाल सुमन, कैलाश शर्मा और मोहनलाल सोनी शामिल थे। इनमे प्रथम दो कलाकार वे हैं, जिन्होंने इस पुरुस्कार के लिए प्रविष्टी भेजी थी। इन सभी का मानना था की इजन दो कलाकारों को पुरुस्कार के लिए चुना गया है वे इसके योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे अपेक्षाकृत कम अनुभवी और दक्ष हैं तथा उनकी प्रविठियाँ उचित माध्यम से नहीं गई हैं। वरिष्ट कलाकारों का ये भी कहना था की पुरुस्कार वितरण का सरकारी रवैया यही रहा तो वे अपनी कला के साथ देशों के गोद चले जायेंगे जो उन्हें अडोप्ट करने को तैयार बैठें हैं।

इस बारे में जब जयपुर में हस्तशिल्प कार्यालय के विकास उपायुक्त शंकरलाल दंगायच से बात की गई तो उन्होंने मूमल को बताया की पुरुस्कार के लिए सरकार की एक आधिकारिक प्रक्रिया है। निर्धारित मापदंड पूरे होने पर श्रेठ कलाकृति को चुना जाता है और उसके रचियता कलाकार को पुरुस्कृत किया जाता है। कलाकार की वरिष्टता या अनुभव की अवधि के आधार पर कलाकृति का चयन नहीं होता। सामान्यतया एंट्री राज्य से होकर केन्द्र सरकार तक जाती है, लेकिन सीधे केन्द्र को भी आवेदन किया जा सकता है। बस कलाकार का सम्बंधित राज्य में पंजीयन होना अनिवार्य है।