शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

जयपुर कला मेला पर निवेशकों कि पेनी नजर

मूमल नेटवर्क, जयपुर। अंतत: राजस्थान कला अकादमी ने भी कला बाजार की अहमियत को माना और कला मेले में प्रदर्शन के लिए लगाई जाने वाली कृतियों के लिए मेला स्थल के बाहर भी बायर उपलब्ध कराने को अपने स्तर पर योजना बनाई।
इससे पूर्व मेला प्रांगण में आने वाले कला प्रेमियों पर ही कलाकृतियों की खरीद निर्भर करती थी। प्रदेश में अपनी बेहतर प्रतिष्ठा बना चुके अकादमी के कला मेले पर पिछले कुछ वर्षों से कला प्रेमियों के साथ कला व्यवसायियों और इस क्षेत्र में पूंजी निवेश करने वालों का ध्यान भी केंद्रित होने लगा है। क्यों कि कला मेले में किसी भी कला दीर्घा से अधिक काम की व्यापक रैंज उपलब्ध होती है। यहां सामान्य बायर और निवेशक को अपने स्तर पर कलाकृति की कीमत का आंकलन करने के अवसर अधिक मिलते हैं। साथ ही कला का खुला आकाश होने के कारण फॉल्स बायर से मिलकर कॉस्ट फिक्सिंग कराने वालों की दाल नहीं गलती। कला मेले का सबसे प्रभावी पक्ष यह माना जा सकता है कि प्रदेश भर के कलाकार यहां आकर अन्य कलाकारों के समकालीन काम को देखते हैं और उन्हें कला जगत में अपनी वास्तविक स्थिति का भान होता है।
एक मुश्त में रुचि नहीं
प्रदेश में पिछले कुछ अर्से में हुई कला गतिविधियों के बाद यह तस्वीर साफ होने लगी है कि आर्ट बायर और इनवेस्टर दोनों ही अब बड़े कलाकारों की मंहगी कृलाकृतियों पर एक मुश्त पैसा लगाने के बजाय उभरते कलाकारों के बेहतर काम पर छोटे-छोटे निवेश करने लगे हैं। इसमें लागत और जोखिम तो कम होती ही है, कलाकार की हाईट अचानक बढ़ जाए तो निवेश किया हुआ धन कई गुना बढऩे के अवसर बनते हं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कुछ सालों पहले शकील सिद्दकी के काम पर एक दैनिक अखबार के युवा निदेशक द्वारा किया हुआ निवेश है, जो अब कई गुना हो चुका है। इसी प्रकार एक कार्पेट व्यवसायी आर्ट कलेक्टर द्वारा चन्द्र प्रकाश सैन के काम पर किया जा रहा निवेश चर्चा में है। जयपुर की शीतल चितलांगिया, भीलवाड़ा के अनिल मोहनपुरिया व सौरभ भट्ट तथा उदयपुर के मोहनलाल जाट व गौरव शर्मा के काम पर भी निवेशकों की नजर है।
वरिष्ठ कलाकार करेंगे मूल्य आंकलन
कलाकृतियों का मूल्य निर्धारित करने के लिए इस बार वरिष्ठ कलाकारों की मदद ली जाएगी। हालांकि प्रदेश में अभी तक कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष आर्ट वैल्युवर नहीं है, लेकिन वरिष्ठ कलाकारों की मदद से नवोदित कलाकारों को अपने काम की कीमत का सही अंदाज तो होगा। यह आशा भी की जा रही है कि अकादमी के इस प्रयास से कलाकारों में 'मिथ्या मूल्य निर्धारण' की प्रवृति कुछ कम होगी। राहुल सेन