मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
शनिवार, 28 दिसंबर 2013
Aakar
एक बड़े सपने का 'आकार'
युवा चितेरों को अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए मंच मिले। उन्हें अपनी कला को और प्रखर करने के लिए कला दर्शकों की टिप्पणियों से प्रोत्साहन मिले। उनकी कला प्रदेश से बाहर निकल कर देश और विदेश में प्रदर्शन के जरिए पहचान बना सके। इसी सोच के साथ लगभग दो दशक पूर्व राजस्थान की तीर्थ नगरी अजमेर में 'आकार' ग्रुप की स्थापना की गई। आकार के रूप में अपनी सोच को स्थापित करने वाले थे अजमेर डी.ए.वी. कॉलेज के चार युवा विद्यार्थी सुभाष कुल्हेड़ी, लक्ष्यपाल सिंह राठौड़, महेश खारोल और प्रहलाद शर्मा।एक बड़े सपने को परवान चढ़ाने के लिए इन चार युवा दृष्ट्रियों की उड़ान तो तैयार थी, पर नेतृत्व नहीं था। आकार को सही नेतृत्व मिल सके और युवा सोच साकार हो सके इसलिए इन चारों ने अपने शिक्षक डा. अनुपम भटनागर से आकार के अध्यक्ष पद को संभालने की अपील की। शिष्यों के आग्रह को डा. भटनागर आज तक आकार के अध्यक्ष रूप में निभा रहे हैं।
पांच चित्रकारों के समूह के रूप में स्थापित आकार का आकार समय के साथ विस्तार पाता गया। अजमेर की सीमा से निकल कर उसने राज्य के विभिन्न नगरों और फिर देश की राजधानी तक अपनी उड़ान भरी। अब देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई सहित अन्य अनेक नगरों तक आकार पंख पसार चुका है। आकार के सदस्यों की कलाकृतियों के विदेशों में हुए प्रदर्शन भी उल्लेखनीय है। देश के विभिन्न हिस्सों से इसके साथ जुड़े कलाकारों और कला प्रदर्शनों की अच्छी-खासी संख्या इसकी पुष्टि करती है।
गुरू और शिष्यों के द्वारा आरंभ हुए आकार की जो सबसे बड़ी विशेषता मुझे लगती है, वह गुरू-शिष्य परम्परा का सार्थक पोषण है। आकार की दूसरी बड़ी विशेषता- इस ग्रुप के अधिकांश सदस्यों का व्यवसायिक पेंटर न होकर कला शिक्षक होना है। नई पौध को कला का क ख ग बताते हुए सच्चे कलाकार गढऩा, साथ ही अपनी कला साधना को निभाते चलना। कुल मिलाकर 'आकार' कला जगत में भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में एक ऐसा पथ तैयार कर रहा है जिस पर भविष्य की समूची कला अपने कदमों को और अधिक साध सके।
-राहुल सेन
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013
गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
बुधवार, 25 दिसंबर 2013
मंगलवार, 24 दिसंबर 2013
सोमवार, 23 दिसंबर 2013
आकार की वार्षिक प्रदर्शनी 26 से
मूमल नेटवर्क, जयपुर। समसामयिक चित्रकारों के 'आकार आर्ट ग्रुप' की वार्षिक कला प्रदर्शनी जयपुर के जवाहर कला केंद्र में 26 से 30 दिसम्बर तक होगी।
आई.ए.एस. करेंगे उद्धाटन
आकार के पदाधिकारी लक्ष्यपाल सिंह राठौड़ के अनुसार डांइग, पेंटिंग और स्कलप्चर की इस प्रदर्शनी का उद्घाटन 26 दिसम्बर को 11 बजे भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी पी.सी. गोयल करेंगे। प्रदर्शनी के प्रथम दर्शक के रूप में जाने-माने वकील आर.ए. कट्टा इनके साथ होंगे। यह प्रदर्शनी 30 दिसम्बर तक प्रतिदिन प्रात: 10 बजे से शाम 7 बजे तक देखी जा सकती है।
जयपुर के लिए नया काम
प्रदर्शनी के बारे में और जानकारी देते हुए आकार के पदाधिकारी प्रहलाद शर्मा नेे बताया कि पिछले सालों की तरह इस वर्ष भी जयपुर के दर्शकों को आकार से जुड़े कलाकारों का नया काम देखने का अवसर मिलेगा। आकार के अध्यक्ष डा. अनुपम भटनागर ने जहां इस बार कृष्ण लीला को अपनी खास शैली में अपना विषय बनाया है, वहीं लक्ष्यपाल सिंह ने अपनी सभी कृतियों को वाटर कलर के वॉश में प्रस्तुत किया है। अमित राजवंशी के कैनवास पर चिरपरिचित अश्वकन्या नए अंदाज में दिखने वाली है। स्वयं प्रहलाद शर्मा ने इस बार प्रकृति के साथ अपनी मत्स्यांगना को नए रूप में एकाकार किया है।
बाईस कलाकारों के काम शामिल
देवेन्द्र कुमार खारोल अपने जल रंगों के साथ अजमेर के लैंडस्केप के साथ नजर आएंगे, उदयपुर के राजाराम व्यास के भाव, हितेन्द्र सिंह भाटी के बहरूपिए, विनय त्रिवेदी की परम्परा, पुष्प कांत के गुरू-शिष्या के अंदाज, रमेश शर्मा के कॉम्पोजिशन, सुरेश प्रजापति के आध्यात्म सहित अनिल मोहनपुरिया के कैनवास पर ऑयल की अटखेलियां देखी जा सकेगी। दिल्ली जा बसने के बाद अजमेर के किरिट का काम एक अर्से के बाद देखा जा सकेगा, दिनेश मेघवाल और एम. कुमार सहित कुल मिलाकर इस साल 22 कलाकारों के काम प्रदर्शित किए जा रहे हैं। इनमेें निरंजन कुमार और शिवराज सिंह करदम की मूर्तिकला शामिल है।
महिला कूंची के नए रंग
महिला चित्रकारों की कूंचियां भी बदलाव के संकेत दे रही हैं। जयपुर की शैला शर्मा के चित्रों में अब समूचे मयूर ने नया आकार लिया है तो मथुरा की उमा शर्मा के कोलाज घाटों की यात्रा के बाद अब घरों की ओर बढ़े हैं। अजमेर की अर्चना तेला की कृतियों में दर्शकों को मानवीय रिश्तों की अनुभूतियों को और करीब से महसूस करने का अवसर मिलेगा। लखनऊ की नीता कुमार की आदिवासी कन्याओं की उपस्थिति के साथ उनकी कृतियों में रजा के रंग भी दिखेंगे लेकिन, जयपुर के दर्शक पिछले वर्ष की तरह इस साल भी रागिनी सिन्हा का नया काम देखने से वंचित रहेंगे।
सबसे महंगी पेंटिंग के बारे में जानिए
रविवार, 22 दिसंबर 2013
शनिवार, 21 दिसंबर 2013
Aakar's Group Show at JKK will be Dec 26, 2013
आकार
A Contemporary Group of Rajasthan
presents a show of
PAINTINGS, DRAWINGS AND SCULPTURES
at
JAWAHAR KALA KENDRA
Sukriti & Surekh Art Gallery,
J.L.N. Marg, Jaipur (Raj)
The Guests of Honor for the event are
Mr. P.C. Gogal (IAS)
Principal Sect., Registrar
Rajasthan Co-operative Dept., (Raj)
and
Mr. R.A. Katta (Advocate)
will be The First Visitor for The Exhibition.
Thursday, Dec 26, 2013 at 1100 hrs
You are cordially invited to grace the exhibition
with your presence
The exhibition will remain open daily
From 26th
Between 1000 hrs to 1900 hrs
Dec to 30th
Dec 2013
A Contemporary Group of Rajasthan
presents a show of
PAINTINGS, DRAWINGS AND SCULPTURES
at
JAWAHAR KALA KENDRA
Sukriti & Surekh Art Gallery,
J.L.N. Marg, Jaipur (Raj)
The Guests of Honor for the event are
Mr. P.C. Gogal (IAS)
Principal Sect., Registrar
Rajasthan Co-operative Dept., (Raj)
and
Mr. R.A. Katta (Advocate)
will be The First Visitor for The Exhibition.
Thursday, Dec 26, 2013 at 1100 hrs
You are cordially invited to grace the exhibition
with your presence
The exhibition will remain open daily
From 26th
Between 1000 hrs to 1900 hrs
Dec to 30th
Dec 2013
गुरुवार, 19 दिसंबर 2013
बिरला स्कूल पिलानी का वार्षिक कला प्रदर्शन
मूमल नेटवर्क, पिछले दिनों बिरला स्कूल पिलानी का वार्षिक कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। प्रदर्शनी का उद्घाटन परमवीर चक्र से सम्मानित श्री बाना सिंह द्वारा किया गया। प्रदर्शनी मे लगभग 250 कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया, जिसमे छोटे-छोटे बच् चों ने अपनी कोमल भावनाओं को प्रदर्शन जल रंग, ऑइल रंग,पेंसिल स्केचिंग, पेस्टल रंग इत्यादि माध्यमों से किया।
प्रदर्शनी मे शुभम भोड़ीवाल, तेजस चौधरी, ध्रुव शर्मा, अमन कुमार वाजपेयी, गौतम, चंचल की कलाकृतियों को दर्शको ने खूब सराहा। सभी अभिभावकों और प्रदर्शनी देखने आए लोगों ने कला शिक्षिका कुमारी ममता देवड़ा के इस प्रयास को सराहा और बधाई दी ।
इस अवसर पर प्रिन्सिपल डॉ॰सत्येंद्र कुमार, श्री सुबोध कुमार (ए॰ओ॰),भूपेन शर्मा (एच॰एम॰) और कला शिक्षिका कुमारी ममता देवड़ा और श्री पीडी खाँडे आदि उपस्थित थे ।
लेबल:
कला प्रदर्शन.,
पिलानी,
बिरला स्कूल,
Birla school,
Pilani
बुधवार, 18 दिसंबर 2013
“Irreverence to your Speech”
Moomal Network, Mumbai.
An exhibition explores the irreverence of artists to fascist political gatherings across interludes of history. Vivan Sundaram had sketched a few drawings after his visit to Auschwitz in 1988. These were drawn four years prior to the demolition of the Babri Masjid in Ayodhya, a temple city in the north Indian state of Uttar Pradesh.
18th December 2013
20:00 hrs: Address by Tushar Joag on Artist run initiatives in India that have opposed communal politics and violence since the demolition of the Babri Masjid in Ayodhya , December 1992. Discussion between Sumesh Sharma (Curator, Bombay), Prabhakar Pachpute (Artist, Bombay) and Kemi Bassene (Artist, Paris). Moderated by Saim Demircan (Curator, Kunstverein München).
PLATFORM
Kistlerhofstr. 70 → Haus 60 → Tor 1
81379 München
Kistlerhofstr. 70 → Haus 60 → Tor 1
81379 München
Krishna Reddy
Vivan Sundaram
Tushar Joag
Shibu Natesan
Justin Ponmany
Kemi Bassene
Caecillia Tripp
Rupali Patil
Amol Patil
Prabhakar Pachpute
Sachin Bonde
Yogesh Barve
Nikhil Raunak
Curators : Sumesh Sharma | Clark House Initiative Bombay
An exhibition explores the irreverence of artists to fascist political gatherings across interludes of history. Vivan Sundaram had sketched a few drawings after his visit to Auschwitz in 1988. These were drawn four years prior to the demolition of the Babri Masjid in Ayodhya, a temple city in the north Indian state of Uttar Pradesh. After the riots that followed the demolition in 1992, many expressed their dissent, Vivan ceased to use painting as a medium. Tushar Joag has drawn a suite of drawings that chronicle with beauty the death of his city Bombay's metropolitan being after the riots of 1992. The riots effectively polarise the city into two communal halves, that only meet for the necessity for trade and infrastructure. Tushar's pain resonates in the work of Amol Patil who strikes a conversation with his avant garde playwright father, who had directed plays that narrated the story of urban migrants from the hinterland that surrounded Bombay to the city to work in its cotton mills. They came from communities that were once India' erstwhile untouchable castes, but who had seen a certain degree of emancipation by a social reform movement and subsequent conversion to Buddhism, by the architect of India's constitution Dr. Babasaheb Ambedkar. They were to be betrayed by metropolitan city that would refuse to shed the constrictions of caste despite the act of migration. Also to be betrayed by a provincial son of the soil movement that championed language rights in the city for the majority populace of the state, while being anti-migrant and populist.
The movement though shrewdly disbanded a well-coordinated labour movement in the city and failed to keep alive traditions of Marathi Theatre that had been kept alive in the mill districts as a form of entertainment and as a forum of re-addressal for the mill workers. Many such movements often associated theirs with Hitler's quest to regain a golden age for Germany and its leader often likened Hitler to a great artist. But Justin Ponmany appropriates the Swastika, a symbol found across various societies, by abstracting it as geometrical drawings on graph paper later putting it to a stop motion animation that constructs a visual origin bereft of the claims that it is endemic to any society. Rupali Patil illustrates a map drawn on a graph paper that shows the rivers of the central state of Chattisgarh. Bureaucrats in this resource rich state often divide its attributes of nature for private exploitation such as water, effectively erasing not only the economic and social lives but also the cultural lives of the various tribes that inhabit its forests encouraging their extinction.
Wars in the subcontinent and the scramble to control Kashmir are rumoured to be over its large reserves of water, similarly Sachin Bonde uses objects renegaded to archaeology and museum studies to comment on the oil politics that plague our geo-political neighbourhood and India through its constant inflation. Prabhakar Pachpute, creates sculptural installation of a sleeping man over demolished apartment blocks made from the debris of buildings through which he reflects on the nihilism of India’s youth and their aptitude to ignore a grave political and social issue that communal constituencies pose to the society. Nikhil Raunak draws the 1968 Black power salute during the Berlin Olympics where two Afro-American runners held their hands out in honour of Angela Davis. Krishna Reddy just after the Paris student protests of 1968, had moved to the town of Cararra to sculpt his drawings of the protests into large marble monuments in their memory working alongside retired anarchist marble miners. Reddy often reminisces that in post war Europe, India was often seen as a culture that had made pacifist protest the most apt weapon for a revolution.
Kemi Bassene, sets a photo in place of a man bathing on the streets of Paris, the image has a fictional narrative: it is the portrait of ‘Selba’ an immigrant West African Jew from Nigeria, who is trying to wash his colour away. Ironically the photo is set in the district of Le Marais where most of the Parisian galleries are located, and the man is someone who has just emerged out of a gallery after having white washed its walls. Kemi constructs a sculpture in the exhibition room. ‘The inevitable re-connection of the finished object to its aesthetic of process. Even the process in photography had moved from the dark room to digital applications, the sink of the acids is the best aesthetic to elevate the piece to show. As Josef Beuys linked all social sciences to determinate their relations to politic sciences, the necessity of relating piece of works to materials responds to our ecological unconscious creativity. The object like the immaterial is devoted to born again by adapting its essence to environment. Then the two intelligences of creating or re-creating will stand to the mercantile intelligence of consuming. Beuys inspires the way cultural objects fall in conflict they are used together. The dimension of extracting the useful recreates a new aesthetic.’’ – Bassene, says this as he explains that as an artist from Senegal, the first point for entry into art history for a people without a history of the modern, is Beuys. As one of the founders of the Afro-Futurist collective Afrikadaa, Kemi denies that the need for a quest for modernity as it only reflects a colonized mind; to be contemporary one must forget with satire, the deeds men did to other men.
Shibu Natesan is a painter, politics informs his practice as it often gives him a subject to paint, to be able to experiment with technique and the canvas, they often begin in water colours that then take a perspective in canvas. Most critics in India have not ever explored his deep and strong association with black consciousness and the movement in India. He is one of the foremost proponents of an association across borders, seas and continents that is defined adherence to a certain music, openness and rejection of the formalism of the West. He often portrays and draws himself around Bob Marley, but a canvas that is most apt to discuss the betrayal of Europe and the United States, and the hypocrisy of their commitment towards equal rights and freedom, is one that illustrates the escape and then subsequent death of Patrice Lumumba. Morning in the Heart, A painting for Patrice Lumumba, 2000 and Last Seen (Last Scene)-1 & 2 , are paintings of a subject – between September 1960 to January of 1961, when the first democratically elected Prime Minister of the Democratic Republic of the Congo was assassinated by the Belgians, CIA and the British for he had opposed their interests in the resource rich forests of the along the river Zaire. The Belgians apologized to the people of the Congo for their mistakes that led to his death, a fact the United States and Britain have never taken cognizance of.
Caecilia Tripp, had put into conversation John Cage's music to the roads of city of Bombay while capturing a cycle as it passes through the homes of the city's indigenous Koli community, she repeats this performance with a Puerto Rican Cycling Club in New York. The film to be premiered for the first time in her native Germany, stresses on the departures from the aesthetics prescribed by a scene that often is addressed to by the market, so as to find an association of significance based on the sheer pleasure of a sport or music.
Fascism cannot be attributed to any one country, religion, people or race. Political situations give rise to a certain acceptability of an acceptance of Fascist Politics where people rally around a singular leader who claims to be capable of a crusade against their poverty, troubles with corruption, etc by declaring certain minority as the reasons of a nations failure to the glory it befits and a golden age that was lost. The method of this exhibition has been irreverent to the formats and best practices of exhibiting; the images are printed on waste paper found outside a printing shop in Tuscany to give a materiality to the irreverence. It is irreverent to the Fascism, propelled by a right wing scouts movement and preached by a man guilty of a pogrom against Muslims in the state of Gujarat in 2003 and the mature and effective use of visual propaganda that is decisive and irresponsible.
Yogesh Barve:
1 - Singham is a too innocent DOG.
2 - an ANIMAL
3 - And Yes, this is just what you are thinking.
All the objects in this work are dismantled by SINGHAM, who is a dog (pet). A very innocent one, If you see, He don't even know the value of a currency, toys or even his own toy. In this triptych 1st and 3rd photo I've used sunboard, which for me the material itself act as fake white surface and the middle one is a base of a cake (wood), which I kept after my youngest cousin's birthday. The surface is used according to my perception of the objects.
"The state, I call it, where all are poison-drinkers, the good and the bad: the state, where all lose themselves, the good and the bad: the state, where the slow suicide of all — is called "life." ― Friedrich Nietzsche, ‘Thus Spoke Zarathustra’.
PLATFORM is an interdisciplinary venue for the production, presentation and mediation of contemporary art, design, and architecture. It encompasses 23 studios in which nearly 40 artists and designers work, an exhibition hall, a guest studio, and a satellite venue for exhibitions and events in the centre of Munich. Each year, several young cultural practitioners are hired to do a yearlong qualification program. Unlike the traditional model in the arts where young curators are hired as assistants, this qualification program offers the opportunity for young curators to realize their own curatorial projects throughout the year. Clark House was invited by this year’s curator Sasha Gora under this program to present a talk and exhibition.
PLATFORM is not supported by the Department of Culture, unlike other non-profit, city-funded spaces. Instead, it is an initiative of the Department of Labor and Economic Development of the State Capital of Bavaria. Therefore, its founding institution is more concerned with the employment of cultural practitioners than it is with culture as such.
PLATFORM has hosted immensely diverse projects dealing with everything from the state of art criticism to the occupy movement and from European urban peripheries to climate change. In the past, PLATFORM hosted lectures by Hou Hanru, Pooja Sood, Jennifer Allen and Lars Bang Larsen, amongst others.
मंगलवार, 17 दिसंबर 2013
गणतंत्र दिवस परेड के लिए तैयार है 'कावड'
हरशिव शर्मा निर्मित झांकी का चयन
मूमल नटवर्क, जयपुर। वर्ष 2014 के गणतंत्र दिवस परेड के लिए जयपुर के नामी कलाकार हरशिव शर्मा द्वारा निर्मित झांकी का चयन हुआ है। इस बार शर्मा ने उदयपुर की 'कावड' को अपना विषय बनाया है। पूर्व के वर्षों में लगातार हरशिव शर्मा द्वारा तैयार झांकियां दिल्ली के जनपथ पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने में कामयाब होती रही हैं। पिछले साल इनकी बूंदी के महल और चित्रशाला की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड़ में द्वितीय पुरस्कार का सम्मान मिला था।क्या होती है 'कावड'
आम, अडूसा और सागवान की लकडी से बनी एक अलमारी नुमा आकृति को कावड कहा जाता है। दो हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी इस अनूठी कावड कला का उद्भव उज्जैन के विक्रमादित्य काल में होना बताया जाता है। कालान्तर में यह कला दक्षिण राजस्थान के मेवाड क्षेत्र में लकडी का काम करने वाले कलाकारों ने अपना ली।
'कावड' की विशेषता यह है कि इस अलमारी के कपाट परत दर परत खुलते जाते हैं और हर कपाट के खुलने के साथ ही उन पर अंकित चित्र कथाएं भी खुलती जाती है। कावड पढने वाले इन्ही चित्रों के आधार पर सम्पूर्ण कथा सुनाते जाते है। लकडी की कावड में ऐतिहासिक घटनाओं के एक-एक प्रसंग देखने वालो के सामने इस तरह से आते है जैसे वह किसी रंगमंच पर कोई नाटक देख रहे हो। जिसमें रामायण एवं महाभारत की पौराणिक कथाओं को चित्रो के माध्यम से एक साथ देखा जा सकता है। आम तौर पर एक बड़ी कावड आठ फीट ऊंची और बीस फुट चौडी हो सकती है। 4 से 16 कपाट तक खुलने वाली कावड बनी हंै। सबसे छोटी कावड माचिस की डिब्बी के आकार की हो सकती है। जिसमें बारीक चित्रों से उत्कृष्ट कला उकेरी हुई देख कर कला के पारखी दर्शक उसे देख चकित हुए बिना नहीं रह सकते।
रामायण, महाभारत और बाईबल के अलावा भगवान गणेश, महावीर जी, प्रभु यीशू, स्वामी विवेकानन्द, आदि शंकराचार्य, मुगल-दरबार, दुर्गादास राठौड, आचार्य महायज्ञ, दशामाता के साथ ही पंचतंत्र, पंचकुला, सहित अनेक लोक प्रचलित दंत कथाओं पर कावडें बनाई जाती है। अब तो दहेज प्रथा, पोलियों, साक्षरता आदि कार्यक्रमों पर भी कावड बनती है।
रविवार, 15 दिसंबर 2013
किरण सोनी गुप्ता ने बनाई नरेगा कार्यों की पेंटिंग
नरेगा कार्यों की पेंटिंग फ्रांस के लूव में प्रदर्शित
मूमल नेटवर्क, जयपुर।
राजस्थान में नरेगा कार्यों के जरिए स्वावलंबन संबंधित एक पेंटिंग फ्रांस के लूव म्यूजियम में प्रदर्शित की गई है। इसे भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी और चित्रकार किरण सोनी गुप्ता ने तैयार किया है।
ऑयल पेंट से बनाई गई यह पेंटिंग में किरण ने नरेगा कार्यों के जरिए वित्तीय स्वावलंबन के प्रतीक के रूप में तीन पीढिय़ों को एक साथ काम करते हुए चित्रित किया है। इसमें अपनी मां और दादी के लिए वित्तीय स्वावलंबन के प्रतीक के रूप में स्कूल यूनिफार्म में एक लड़की को भी दर्शाया गया है। इस म्यूजियम में मोनालिसा की पेंटिंग भी प्रदर्शित है।
शनिवार, 14 दिसंबर 2013
छोटे शहरों में भी महंगी पेंटिंग्स की सेल
25 हजार से शुरू होकर एक लाख रुपए तक की 11 पेंटिंग्स बिकी
मूमल नेटवर्क, रांची।
जवाहर लाल नेहरू कला केंद्र में 42 पेंटिंग्स से सजी एग्जीबिशन लगी और उनमे से 11 पेंटिंग्स बिक गयीं। इनमें वो पेंटिंग्स शामिल थीं जिनकी कीमत 25 हजार से शुरू होकर एक लाख रुपए तक की थी। ऐसा रांची और पूरे झारखंड में पहली बार हुआ। इस खरीददारी ने रांची के आटिँस्टों की आंखों में यह सपना सजा दिया है कि वे दिन अब दूर नहीं जब यहां भी मेट्रो सिटीज की तरह क्रिस्टी और सॉदबी की पेंटिंग्स की ऑक्शन लगेगी और खरीदनेवाला भी रांची का ही होगा।
मिडिल क्लास फैमिली ने खरीदा
रांची के आर्टिस्ट प्रवीण कर्मकार का कहना था कि सिटी में पेंटिंग्स की अच्छी प्राइस पर सेल होना अच्छी बात है। यह इस बात का संकेत है कि मेट्रोपॉलिटन सिटी की तरह यहां भी कला के कद्रदान पैदा हो रहे हैं। पहले रांची की मिडिल क्लास फैमिली पेंटिंग्स खरीदना अफोर्ड नहीं कर पाती थी, पर अब ऐसा नहीं है। एग्जीबिशन में मेरी दो पेंटिंग्स जिनकी कीमत 20-25 हजार रुपए के बीच है बिकी है और उसे मिडिल क्लास फैमिली के लोगों ने ही खरीदा है। ये दोनों पेंटिंग्स लैंडस्केप पेंटिंग्स थी और दोनों ही अनटाइटल्ड हैं। इनमें झारखंड की खूबसूरत सीनरी को दर्शाया गया है।
यह बहुत बड़ा चेंज है
झारखंड के ही एक नामी आर्टिस्ट जिनकी पेंटिंग भी एग्जीबिशन में सेल हुई है, ने बताया कि रांची के लोगों के माइंडसेट में चेंज आया है। अब लोग पेंटिंग्स को भी असेस्ट के रूप में देखने लगे हैं। आर्ट और आर्टिस्ट्स के स्टैंडर्ड के हिसाब से लोग हाई प्राइस चुकाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। पहले लोग किसी का क्रिएशन यानी पेंटिंग्स खरीदने से बेहतर एक पोस्टर खरीदना समझते थे पर अब ऐसा नहीं रहा। यह बहुत बड़ा चेंज है।
आर्टिस्ट हरेन ठाकुर ने बताया कि कला के प्रति लोगों में दीवानगी कैसी है। इसका असर आर्ट गैलरी में लगे
एग्जीबिशन में देखने को मिल रहा था। रांची के बाबला सरकार ने तीन पेंटिंग्स बुक कराई है। वहीं मेकॉन कॉलोनी में रहनेवाली एक म्यूजिशियन फैमिली ने भी नामी आर्टिस्ट सुमन टोप्पो की पेंटिंग्स खरीदी हैं
एग्जीबिशन में विनोद रंजन, शर्मिला ठाकुर और दिनेश सिंह की भी पेंटिंग्स सेल हुई। आर्टिस्ट विनोद रंजन ने बताया कि उनकी बनाई गई पेंटिंग मॉर्डन क्रो 20 हजार रुपए में बाबला सरकार ने खरीदी। उन्होंने बताया कि रांची के लोग डेकोरेटिव पेंटिंग्स खरीदना चाहते हैं, जिसे वे बेडरूम या फिर अपने हॉल में लगा सके।
मूमल नेटवर्क, रांची।
जवाहर लाल नेहरू कला केंद्र में 42 पेंटिंग्स से सजी एग्जीबिशन लगी और उनमे से 11 पेंटिंग्स बिक गयीं। इनमें वो पेंटिंग्स शामिल थीं जिनकी कीमत 25 हजार से शुरू होकर एक लाख रुपए तक की थी। ऐसा रांची और पूरे झारखंड में पहली बार हुआ। इस खरीददारी ने रांची के आटिँस्टों की आंखों में यह सपना सजा दिया है कि वे दिन अब दूर नहीं जब यहां भी मेट्रो सिटीज की तरह क्रिस्टी और सॉदबी की पेंटिंग्स की ऑक्शन लगेगी और खरीदनेवाला भी रांची का ही होगा।
मिडिल क्लास फैमिली ने खरीदा
रांची के आर्टिस्ट प्रवीण कर्मकार का कहना था कि सिटी में पेंटिंग्स की अच्छी प्राइस पर सेल होना अच्छी बात है। यह इस बात का संकेत है कि मेट्रोपॉलिटन सिटी की तरह यहां भी कला के कद्रदान पैदा हो रहे हैं। पहले रांची की मिडिल क्लास फैमिली पेंटिंग्स खरीदना अफोर्ड नहीं कर पाती थी, पर अब ऐसा नहीं है। एग्जीबिशन में मेरी दो पेंटिंग्स जिनकी कीमत 20-25 हजार रुपए के बीच है बिकी है और उसे मिडिल क्लास फैमिली के लोगों ने ही खरीदा है। ये दोनों पेंटिंग्स लैंडस्केप पेंटिंग्स थी और दोनों ही अनटाइटल्ड हैं। इनमें झारखंड की खूबसूरत सीनरी को दर्शाया गया है।
यह बहुत बड़ा चेंज है
झारखंड के ही एक नामी आर्टिस्ट जिनकी पेंटिंग भी एग्जीबिशन में सेल हुई है, ने बताया कि रांची के लोगों के माइंडसेट में चेंज आया है। अब लोग पेंटिंग्स को भी असेस्ट के रूप में देखने लगे हैं। आर्ट और आर्टिस्ट्स के स्टैंडर्ड के हिसाब से लोग हाई प्राइस चुकाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। पहले लोग किसी का क्रिएशन यानी पेंटिंग्स खरीदने से बेहतर एक पोस्टर खरीदना समझते थे पर अब ऐसा नहीं रहा। यह बहुत बड़ा चेंज है।
आर्टिस्ट हरेन ठाकुर ने बताया कि कला के प्रति लोगों में दीवानगी कैसी है। इसका असर आर्ट गैलरी में लगे
एग्जीबिशन में देखने को मिल रहा था। रांची के बाबला सरकार ने तीन पेंटिंग्स बुक कराई है। वहीं मेकॉन कॉलोनी में रहनेवाली एक म्यूजिशियन फैमिली ने भी नामी आर्टिस्ट सुमन टोप्पो की पेंटिंग्स खरीदी हैं
एग्जीबिशन में विनोद रंजन, शर्मिला ठाकुर और दिनेश सिंह की भी पेंटिंग्स सेल हुई। आर्टिस्ट विनोद रंजन ने बताया कि उनकी बनाई गई पेंटिंग मॉर्डन क्रो 20 हजार रुपए में बाबला सरकार ने खरीदी। उन्होंने बताया कि रांची के लोग डेकोरेटिव पेंटिंग्स खरीदना चाहते हैं, जिसे वे बेडरूम या फिर अपने हॉल में लगा सके।
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013
तस्लीमा जमाल की पेंटिंग्स एग्जीबिशन
'गढ़ी' के रंगों में दिखा मिट्टी से जुड़ाव
मूमल नेटवर्क, जयपुरघर, गांव, मिट्टी से झांकता अपनत्व और पिता के सपनों को पूरा करने का अटल निश्चय, यह सब दिखा बांसवाड़ा निवासी आर्टिस्ट तस्लीमा जमाल की पेंटिंग्स एग्जीबिशन में। जेकेके की सुकृति आर्ट गैलरी में 'गढ़ी' नाम से प्रदर्शित इस सोलो एग्जीबिशन में विभिन्न रंगों और चेहरे के अलग-अलग भावों को एक खास डिजाइन में पेश करते हुए तस्लीमा ने अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से अपने देश, गांव के माहौल, खेत- खलिहान, चौपाल, पनघट, पशु- पक्षियों , बड़े-बुजुर्ग और बच्चों को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। मॉडर्न और ट्रेडिशनल आर्ट डिजाइन को एक कैनवस पर उकेरती इन पेंटिंग्स का मीडियम मुख्य रूप से ऑयल ऑन कैनवस है।
पेंटिंग को एक आर्ट और प्रोफेशन के तौर पर अपनाने वाली तस्लीमा ने बताया कि उनके पिता का यह सपना था कि बड़ी होकर तस्लीमा पेंटिंग्स और रंगों के माध्यम से अपना भविष्य संवारें। वे कहती हैं कि जब वे 12वीं कक्षा में थी, तो उनके पिता का देहावसान हो गया। पिता के चले जाने के बाद उन्होंने यह तय किया कि वे अपने पिता का सपना अवश्य पूरा करेंगी। तस्लीमा की पेंटिंग्स में गांव के रंग दिखाई देते हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण है उनका उनके पिता, परिवार, और गांव के प्रति लगाव।
गुरुवार, 12 दिसंबर 2013
कला सत्य की अनुकृति -जैसवाल
छात्राओं ने दिया प्रतिभा का परिचय
मूमल नेटवर्क, अजमेर।आकार ग्रुप के जाने-माने आर्टिस्ट डॉ. अमित राजवंशी के संयोजन में राजकीय कन्या महाविद्यालय की छात्राओं की दो दिवसीय चित्रकला प्रदर्शनी का शुभारंभ 12 दिसम्बर को किया गया। सूचना केन्द्र की कला दीर्घा में आरम्भ हुई इस प्रदर्शनी का उद्घाटन कलाविद् राम जैसवाल ने किया। इस अवसर पर समकालीन चित्रकार प्रहलाद शर्मा भी उपस्थित थे।
जैसवाल ने छात्राओं की कलाकृतियों की प्रशंसा कर उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कला सत्य की अनुकृति है। इसके माध्यम से समाज को जोड़ा जा सकता है। संयोजक राजवंशी ने बताया कि यह पहला अवसर है, जब महाविद्यालय की छात्राओं की चित्र प्रदर्शनी आम लोगों के लिए आयोजित की जा रही है। चित्रकार प्रह्लाद शर्मा ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रदर्शनी के माध्यम से लोग छात्राओं की कला प्रतिभा से रूबरू हो सकेंगे। इससे कलात्मक वातावरण भी बनेगा।
कार्यक्रम अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. मीरा चंदावत ने कहा कि छात्राओं ने अपनी कला प्रतिभा का परिचय दिया है। इस अवसर पर उपाचार्य आरएस अग्रवाल भी मौजूद थे। प्रदर्शनी में 50 विद्यार्थियों की 300 चित्रकृतियां प्रदर्शित की गई ।
बुधवार, 11 दिसंबर 2013
अनंत आकाश सी संभावनाएं
अपनी पेंटिंग दिखाते हुए जगदीश |
कुछ और निखरा जगदीश व राहुल का काम
मूमल नेटवर्क, जयपुर। नि:शक्तजन की एक दायरे में सिमटी दुनियां में अनंत आकाश सी संभावनाएं देखते रहने वाले संवेदनशील चित्रकार जगदीश प्रसाद मीणा ने एक बार फिर अपनी कृतियों में इसी विषय पर अपनी नई अभिव्यक्तियां कैनवास पर उकेरी हैं। इस बार जगदीश की सोच और बड़ी और विचार अधिक परिपक्व नजर आ रहे हैं। इसी के साथ नए हस्ताक्षरों के साथ राहुल उषाहरा ने अपनी कूंची को प्रकृति के साथ एक-मेक किया है।जवाहर कला केंद्र की सुकृति आर्ट गैलेरी में 7 से 11 दिसम्बर तक चली इस चित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ राजस्थान विश्वविद्यालय की पूर्व डीन ओर जगदीश की कला गुरू प्रोफेसर कमला गर्ग ने किया। पिछले दिनों राजस्थान यूनिवर्सिटी के चित्रकला विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद तक पहुंचे जगदीश प्रसाद मीणा और अभी अपनी कला शिक्षा में लीन भ्राता राहुल उषाहरा ने अपनी पेंटिंग्स में अपने नए तेवर दिखाएं हैं। जगदीश नें चिरपरिचित नीले रंग में नि:शक्तजन की दुनियां दर्शाते हुए यह व्यक्त किया है कि आकाश के इस रंग में अनंत अतंरिक्ष है। यही वजह है कि सभी पेंटिंग्स नीले रंग में बनाई गई हैं। मानव का दुखी जीवन संघर्ष, नि:शक्त बच्चों की मानसिक पीड़ा व गर्भावस्था में नारी की मानसिक अवस्था को विषय बनाकर अपनी बात कही है। वहीं रहुल ने प्राकृतिक दृश्यों, खेत-खलिहानों के बीच बिजूके बनाकर अपनी बात कहने के नए आयाम चुने हैं। ऑयल, एक्रेलिक, वॉटर, चारकोल, पेंसिल से बनी इन पेंटिंग्स को दर्शकों की बेहतर सराहना मिली। ग्रासरूट लेवल पर अपनी जड़े बताते हुए हरे बांस के तन पर विभिन्न नामों का लिखा जाना हो या खेत में लगाए गए बिजूके में महिला वस्त्रों का उपयोग कर नारी की भागीदारी दर्शाना, कमांबेश सभी कृतियों में युवा मन की बात रंगों की भाषा से कही गई है।
राहुल अपनी पेंटिंग के साथ |
मंगलवार, 10 दिसंबर 2013
MADE IN HEAVEN 50 फीट लंबी पेंटिंग
जियोलॉजिस्ट शुभोब्रत का कला पक्ष
'मेड इन हैवन '
मूमल नेटवर्क, जयपुर। लिम्का बुक ऑफ रिकाड्र्स में नाम दर्ज कराने वाले जयपुर के आर्टिस्ट शुभोब्रत मुखर्जी ने 50 फीट लंबी पेंटिंग 'मेड इन हैवन' पंटिंग का प्रदर्शन कर एक बार फिर कला जगत को चौंकाया। यह पेंटिंग ऐसी मशहूर जोडिय़ों को समर्पित की गई है, जिन्होंने अपने साथ के लिए हर तरह की कठिनाइयों का सामना किया। यह कलाकृति ट्रेसिंग फिल्म पर एक्रेलिक कलर्स से बनाई गई है।पिछले दिनों जेकेके की चतुर्दिक आर्ट गैलरी में हुए इस प्रदर्शन में 'मेड इन हैवन' के जरिए शुभोब्रत ने यह अभिवक्त किया है कि पृथ्वी पर एक दूसरे के प्रति प्रेम में सराबोर रहने वाली जोडियां स्वर्ग में ही तय हो जाती है। पेंटिंग में अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि में विश्व की मशहूर जोडिय़ों के रूप में ें शिव-पार्वती से शुरू कर राम-सीता, राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत, एडम-ईव, सावित्री-सत्यवान, एंटोनी-कल्योपात्रा, शांतनु-सत्यवती, अर्जुन-द्रौपदी, संयुक्ता-पृथ्वीराज, सलीम-अनारकली, शाहजहां-मुमताज, हेलेन-पेरिस, लैला-मजनू और रोमियो-जूलियट तक को शामिल किया गया है। यह पेंटिंग उन सभी जोडिय़ों के नाम की गई है जिन्होंने अपने साथ के लिए हर तरह के दुख और कठिनाइयों का सामना किया।
इस पेंटिंग को बनाने में 6 महीने का समय लगा।
शुभोब्रत एक जियोलॉजिस्ट हैं और साइंस बैकग्राउंड से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन भीतर छुपा कलाकार उनसे यह सब भी कराता रहता है। इससे पूर्व शुभोब्रत ने लगभग इतनी ही लम्बी पेंटिंग, 'डांस इन हैवनÓ बनाई थी। वर्ष 2010 में वह लिम्का बुक ऑफ रिकाड्र्स में दर्ज की गई। इसमें भी अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि देश-विदेश की दो दर्जन से अधिक नृत्य शैलियों को दर्शाया गया हैं।
रविवार, 8 दिसंबर 2013
जयपुर में अखिल भारतीय महिला चित्रकार कला शिविर
महिलाओं द्वारा तैयार कृतियों का मूमल ने बनाया कोलाज |
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केन्द्र द्वारा पिछले पखवाड़े आयोजित अखिल भारतीय महिला चित्रकार कला शिविर के दौरान समसामयिक महिला चित्रकारों ने अपनी परिचित शैली में कैनवास पर अपने भाव अभिव्यक्त किए।
चार दिसम्बर की शाम केन्द्र की पारिजात द्वितीय कला दीर्घा में पांच दिवसीय इस शिविर में दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड एवं राजस्थान की 20 चित्रकारों ने भाग लिया । शिविर का उद्घाटन कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख शासन सचिव किरण सोनी गुप्ता ने किया। पांच दिवसीय इस शिविर में दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड एवं राजस्थान की प्रमुख चित्रकारों ने भाग लिया।
इस शिविर में कलाविद् से सम्मानित जयपुर की वरिष्ठकलाकार वीरबाला भावसार अपने पसंदीदा विषय ग्रामीण परिवेश को सेंड के माध्यम से अभिव्यक्त किया। जानी-मानी चित्रकार ममता रोकना ने अपने महिला सशक्तिकरण के साथ उनके सौन्दर्य को अपना विषय बनाया जबकि मणी भारतीय ने अपनी कृति में कैनवास पर कपड़े से कोलाज बनाया। मीनाक्षी भारती के पंचतत्वो से सजी पेंटिंग लुभा रही थी। किरण सोनी गुप्ता ने भी शिविर में अपने प्राकृतिक भावों को कैनवास पर अभिव्यक्त किया। उदयपुर की मीना बया ने अपने चिरपरिचित अंदाज में एक नई अनुभूति को कैनवास पर आकार दिया।
शिविर में सम्मिलित होने वाली कलाकारों में झारखण्ड-मुक्तागुप्ता (जमशेदपुर), उत्तरप्रदेश-नीतू सिंहल (लखनऊ), पंजाब-कविता सिंह (पटियाला), मध्यप्रदेश-अपर्णा अनिल, शैलिका श्रीवास्तव (भोपाल), दिल्ली-राखी जैन, पूनम चन्द्रिका त्यागी, शुभ्रा चांद, इन्दू त्रिपाठी, राजस्थान-दीपिका हाजरा (अजमेर), सुरजीत कौर चौयल (उदयपुर), मीनाक्षी भारती (बूंदी), मीना बया (उदयपुर), वीरबाला भावसार (जयपुर), मणी भारतीय (बूंदी), कृष्णा महावर (कोटा), ममता रोकना (जयपुर), कुक्कु माथुर (जयपुर), शबनम हुसैन (उदयपुर), एवं अर्चना (किशनगढ़) प्रमुख हैं।
बुधवार, 4 दिसंबर 2013
चार राज्यों के युवा चितेरों की उड़ान
हरियाणा, उड़ीसा, हिमाचलप्रदेश और राजस्थान के कलाकारों की अभिव्यक्ति
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केंद्र की सुदर्शन आर्ट गैलरी में 3 से 6 दिसम्बर तक हरियाणा, उड़ीसा, हिमाचलप्रदेश और राजस्थान के कलाकारों की अभिव्यक्ति मुखर हुई।
युवा रंग और अभिव्यक्ति के चलते अजमेर के विक्रम सिंह मारोठिया, धर्मशाला के संतोष मौर्य, उड़ीसा के गिरधारी साहू और शिमला की नेहा शर्मा द्वारा बनाई पेंटिंग्स ने दर्शकों को प्रभावित किया। कमोबेश सभी कृतियों में कलाकारों की नई सोच और रचना के नए अंदाज कई अर्थों में भिन्न रहे। प्रदर्शनी का उद्धाटन पद्मश्री से सम्मानित चित्रकार एस. शाकिर अली और वरिष्ठ मिनिएचर आर्टिस्ट जयशंकर शर्मा ने किया।
लकड़ी के फंटों पर म्यूरल
विक्रम सिंह मारोठिया ने लकड़ी के फंटों पर म्यूरल का अहसास कराती कलाकृतियां बनाई। कुछ नया करने के उत्साह में उन्होंने इस नए माध्यम में म्यूरल जैसी रचना की है। इसमें पेपरमैशी से तैयार मुखौटों, सूखी डालियों और पत्तियों के साथ गोलाकारों के उपयोग से उपजाए थ्री डी इफेक्ट ने कृतियों को बेहतर किया है। कलाकार ने प्रकृति और इंसान के रिश्तों को दर्शाने में एक हद तक सफलता भी पाई है।
ईश दर्शन के चटक अंदाज
हिमालय के करीब हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से आए संतोष मौर्य ने कैनवास पर ईश्वर दर्शन को नए अंदाज से जीवंत किया। संतोष ने शिव - पार्वती और शिवलिंग की आकृतियों के साथ ही गणेश को विभिन्न आयामों में जीवंत किया है। चटख रंगों से नटराज की मुद्रा में काली माई की आकृति चित्रित करने का उनका अंदाज भी ताजगी से भरा था।
कैनवास पर मेडिटेशन
नेहा शर्मा ने कैनवास पर मेडिटेशन को चित्रित किया है। मेडिटेशन से जीवन में खुशियों के फूल खिलाने की सोच के साथ रंगों के आकर्षक संयोजन से नेहा की पेंटिंग्स अधिक आकर्षक बनी हैं।
टैक्सचर की गहनता
भारती शर्मा ने तरह-तरह की ज्योमेट्रिकल आकृतियां बनाकर पानी की उथल-पुथल से बनने वाले टैक्सचर को अपने कलाकृतियों का माध्यम बनाया। रचनाएं अमूर्त है, जिसमें टैक्सचर की गहनता देखने लायक हैं।
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