रविवार, 19 अक्टूबर 2014

क्रिस्टीज की भारत में दूसरी नीलामी दिसंबर में


क्रिस्टीज की भारत में दूसरी नीलामी दिसंबर में
मूमल नेटवर्क, मुंबई।
लंदन स्थित नीलामी घर क्रिस्टीज 11 दिसंबर को मुंबई में अपनी दूसरी नीलामी का आयोजन करने जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि पिछले साल की तुलना में इस बार कला संग्राहकों द्वारा कला बाजार में अधिक पूंजी निवेश किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि 2013 में मुंबई में क्रिस्टीज की पहली नीलामी में भारतीय कला बाजार के मूल्यों की स्थापना के लिहाज से अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। क्रिस्टी की पहली नीलामी में भारत में पहली बार अत्यधिक मूल्य में कला की बिक्री हुई थी। तब 6 करोड़, 59 लाख, 37 हजार, 500 रुपए की कुल बिक्री हुई थी, जो पूर्वानुमान से दुगनी थी।
पिछले दिनों भारत में हुई कला के खरीद फरोख्त से यह साबित हो चुका है कि अच्छी कलाकृतियां कला संग्राहकों को अधिक कीमत के बाद भी आकर्षित करती हैं।  उदाहरण के लिए, पिछले महीने दिल्ली स्थित सैफ्रान आर्ट द्वारा एक नीलामी में कुल 83 कलाकृतियां 38 करोड़ में बेची गई। इस विक्रय में जहांगीर सबावाला की एक पेंटिंग की कीमत 3 करोड़ रुपए प्राप्त हुई थी।
पिछले महीने ही आधुनिक और समकालीन कला की एक ऑनलाइन नीलामी में एम.एफ. हुसैन, एस.एच. रजा और अंजलि इला मेनन सहित भारतीय कलाकारों की कृतियों से 20 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। आस्तागुरू डॉट कॉम द्वारा हुई इस नीलामी में
रजा कीे 'भूमि' शीर्षक वाली एक पेंटिंग का मूल्य 3 करोड़ रुपए मिला था।
भारत में भारतीय कला की सफल बिक्री को देखते हुए क्रिस्टीज की एशियन आर्टस के अंतरराष्ट्रीय निदेशक  अमीन जाफर इस साल दिसम्बर में होने वाली नीलामी से अच्छे परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं। इस नीलामी के लिए अच्छी कलाकृतियों का चयन किया गया है।
अमीन जाफर ने जानकारी देते हुए कहा कि वह नीलामी में जंहागीर सबावाला द्वारा 1974 में बनाए गए एक लैण्डस्केप 'ग्रीन केप' के साथ तैयब मेहता का दुर्लभ पोटे्रट नीलाम किया जाएगा। इनकी नीलामी से 1.2 करोड़ से 1.8 करोड़ रुपए मिलने का पूर्वानुमान लगाया गया है। इसके साथ ही   भूपेन खखर, सुबोध गुप्ता, राशिद राणा, मिठु सेन, भारती खेर, नीलिमा शेख और ठुकराल व टागरा के काम शामिल हैं।
पिछले साल कला बाजार की अच्छी प्रतिक्रिया देखकर क्रिस्टी ने भारत में एक वार्षिक नीलामी करवाने का फैसला किया है। जाफर कहते हैं, 'हम लंबे समय के लिए भारतीय बाजार के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम 20 साल के लिए भारत में उपस्थिति बनाए हुए हैं, लेकिन अब वह वक्त आया है जो भारत में कला बाजार के लिए एक जीवंत और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करेगा।
क्रिस्टी की दूसरी नीलामी के लिए हर कोई इंतज़ार कर रहा है क्योंकि यह सही मायने में भारतीय कला के लिए बाजार को परिभाषित करेगा। पहली नीलामी में कलाकृतियों का एक शानदार संग्रह था और क्रिस्टी इसके पीछे की पूरी ताकत थी। अब दूसरी नीलामी में गुणवत्ता और मूल्य के लिहाज से कुछ नए आयाम सामने आएंगे, यही आशा है।

Sukant Das's RADHIKA at ICA Gallery


गुरुवार, 11 सितंबर 2014

और संवरेंगी Rajasthan CMO की कलाकृतियां

मूमल नेटवर्क, जयपुर।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने कार्यालय में सजी कलाकृतियों के रखरखाव पर ध्यान देते हुए उनके फै्रम बदलने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत मुख्यमंत्री कार्यालय के विभिन्न तलों पर प्रदर्शित प्रदेश के प्रमुख चित्रकारों की कृतियों सहित विभिन्न स्कूली बच्चों की चित्रकारी को भी संजोया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री कार्यालय के विभिन्न कक्षों और गलियारों को सजाने के लिए अपने पिछले कार्यकाल में राजे ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों के सहयोग से राजकीय संग्रहालयों, राजस्थान ललित कला अकादमी और जवाहर कला केंद्र से कलाकृतियां एकत्र कराई थी। अभी सीएमओं में कोटा, झालावाड़, भरतपुर और के राजकीय संग्रहालयों से जुटाई गई पाषाण प्रतिमाओं सहित पारंपरिक और समामयिक चित्रकला की कृतियां सजाई गई हैं। स्कूली बच्चों की नजर में राजस्थान क्या और कैसा है, इसे नजर में रखते हुए आयोजित कार्यक्रमों से निकली बाल कृतियों को भी सीएमओ में प्रमुखता से सजाया गया है।

सीएमओंं में प्रदेश के 59 कलाकारों की कुल 83 कलाकृतियां शामिल हैं। इनमेंं सबसे अधिक पंटिंग्स उदयपुर के चित्रकार ललित शर्मा की हैं। इसके बाद राजस्थान ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष भवानी शंकर शर्मा की चार कलाकृतियां हैं। दिलीप सिंह चौहान, विद्यासागर उपाध्याय व मीनाक्षी भारती कासलीवाल की तीन-तीन और बी.सी. गुई, देवकी नंदन शर्मा, जी.एल. जोशी, गोपाल शर्मा, हरिशंकर गुप्ता, लालचंद मारोठिया, एम. के. शर्मा 'सुमहेंद्रÓ, पी. अंजनी रैड्डी, आर.बी. गौतम, सुरेश राजोरिया और सुरेश जोशी की दो-दो पेंटिंग्स शामिल की गई हैं। 

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

डा. अन्नपूर्णा ललित कला-संगीत विकास परिषद की प्रान्तीय अध्यक्ष

मूमल नेटवर्क, जयपुर। वरिष्ठ चित्रकार डा. अन्नपूर्णा शुक्ला को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) की संस्था ललित कला-संगीत विकास परिषद ने राजस्थान का प्रान्तीय अध्यक्ष नियुक्त किया है। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम बहादुर द्विवेदी ने उनकी नियुक्ति के साथ यह आशा व्यक्त की है कि इस नियुक्ति के बाद डा. शुक्ला के प्रयासों से परिषद राजस्थान का आईना बनेगी।

सोमवार, 25 अगस्त 2014

जूही जैन की कृतियों का प्रदर्शन 29 से जयपुर में


मूमल नेटवर्क, जयपुर। कलाकार जूही जैन की कृतियों की एकल कला प्रदर्शनी जवाहर कला केंद्र की सुदर्शन कला दीर्घा में 29 से 31 अगस्त तक होगी। वरिष्ठ चित्रकार प्रो भवानी शंकर शर्मा इसका उद्धाटन करेंगे। इस प्रदर्शनी में जूही ने अमेरिकी कवि और उपन्यासकार बुकोवस्की की रचनाओं को कैनवास पर आकार देने का प्रयास किया है। 'बुकोवस्की क्रॉनिकल' के नाम से आयोजित इस शो में प्रदर्शित जूही के चित्र शब्दों में व्यक्त गुस्से और खुशी की अभिव्यक्ति करते हैं।
स्वयं अपने प्रयासों से चित्रकला में दक्षता की ओर बढ़ती जूही जैन जयपुर में काम करती हैं। हालांकि उनका काम दिल्ली में पला-बढ़ा है, लेकिन उनका लगाव जयपुर से ज्यादा है। उल्लेखनीय है जूही टेटू आर्ट के क्षेत्र में अधिक जानी जाती हैं।

रविवार, 24 अगस्त 2014

थ्रू दी हार्ट में बंगाली कलाकारों का बोलबाला


मूमल नेटवर्क, जयपुर। देशभर के करीब 40 चित्रकारों ने दिल से कही जाने वाली भाषा को कैनवास पर आकार दिया और उन्हें पिछले दिनों गुलाबी नगरी जयपुर में 'थ्रू दी हार्ट' के नाम से प्रदर्शित किया। इनमें राजधानी दिल्ली सहित पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व झारखंड के कलाकार शामिल है। पड़ौसी देश नेपाल और बांग्लादेश के एक-एक कलाकारों की भागीदारी के चलते इसे इंटरनेशनल आर्ट शो शो किया गया।
प्रदर्शनी का उद्धाटन वरिष्ट कलाकार डा. चिन्मय मेहता ने किया। इस आर्ट शो में पश्चिम बंगाल के 19 कलाकारों सहित अन्य क्षेत्रों से शामिल 5 अन्य बांग्लाभाषी कलाकारों के कारण बंगाली कलाकारों के काम का बोलबाला रहा।
नई दिल्ली के राजिब सिकदार ने जीवन की उपलब्धियों को मिक्स मीडिया के जरिए दर्शाया है। पश्चिम बंगाल के नादिया में जन्में सिकदार फ्रिलांस आटिस्ट हैं। आईफेक्स से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित राजिब ने बताया कि इस प्रदर्शनी के प्रमुख के रूप में वे जयपुर में उपस्थित हैं। देशभर से इस शो में शामिल चित्रकारों के यह काम इससे पहले भी कई शहरों में प्रदर्शित किए जा चुके हैं। अब जयपुर के बाद अगला शो बंगलूर में आयोजित होगा।

कोलकाता की एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट से सम्मानित राजर्षि अधिकारी ने सिल्क पर जलरंगों से पौराणिक देवी-देवताओं के साथ प्रकृति चित्रण किया है। 'वाटर गार्डन' शीर्षक के साथ एक जल कुंड की प्रकृति को बेहतर रूप से दर्शाया है। देवी दुर्गा और दुर्गा परिवार का जल विहार भी बेहतर बन पड़े हैं। गोपियों के वस्त्रों के साथ वृक्ष की शाखा पर बांसुरी वादन करते कृष्ण का चित्रण भी मन मोहक है।
कोलकाता के शुभेन्दु विश्वास ने मिक्स मीडिया में कैनवास पर जीवन के आरंभ को प्रदर्शित किया है। उन्होंने मां के गर्भ से ही एक बालक की उड़ान के प्रति रुचि को बखूबी संयोजित किया है।
छत्तीसगढ़ के पूणेन्दु मंडल ने कैनवास पर एक्रेलिक रंगों से कोलकाता के आधुनिक शहरी जीवन की हलचल में आज भी सांस लेती पुरानी ट्रामों के इन्क्लूजन को कुशलता से उभारा है।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित झाडखंड से आई विनीता बंद्योपाध्याय के स्वभाव में कल विरासत को संभालने के साथ आज को सहेजने की झलक दिखती है। यही सबकुछ उनकी चित्रकारी में भी साफ झलकता है। उडि़सा की पारम्परिक वॉल पेंटिग्स की आकृतियों के साथ आधुनिक परिवेश व मुखौटों से वे अपनी बात कहती लगती हैं।
कोलकाता की रिनी चन्द्रा के चित्रों में मानव जीवन काल में बनते-बदलते रिश्ते और अहसास के मौसम नजर आए। उनकी कृति 'ऑटम' में शरद के पतझड़ से दरकते संबंधों का बेहतर चित्रण हैं। बहुत सरल रंगों, रेखाओं और आकृतियों से अपनी बात कहने की क्षमताओं वाले रिनी के चित्रों की सादगी आकृर्षित करती है।
पश्चिम बंगाल के गौतम शाहा मानव मन में होने वाली हलचल और सोच को आधुनिक जामे के साथ कैनवास पर साकार किया है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो को गहरे गॉगल्स, इयर फोन और मेडिकल माक्स से दर्शाने की सोच इनके काम में शामिल है। पुरातन वीणा के तारों की झंकार का डिजिटल साउंड की वायरिंग की रिकॉडिंग से उपजी स्थिति की एक सुधि दर्शक ने प्रवीण और कुशल जैसे शब्दों की निरुक्ति से व्याख्या कर एक बार फिर यह साबित किया कि दर्शक की सोच कलाकार की सोच से कहीं अधिक आगे हो सकती है।
इन्हीं के साथ कोलकाता के राहुल मुखर्जी ने अपनी कृति में मरणोपरान्त आत्मिक सोच को आकार देने का प्रयास किया है। जबकि चौबीस परगरना की पॉलोमी सेन ने दुर्गा रूपा स्त्री शक्ति को मछली पकडऩे के कांटों में उलझ कर पहचान खोती जा रही बेबस आकृति के रूप में दिखाया है। नजमा अख्तर व डॉ. बुशरा नसीम का काम भी सराहनीय था।
कारोबार
इन दिनों राजस्थान मेंं बंगाली चित्रकारों की सोच और तकनीक की ओर दर्शकों और बायर्स का खास ध्यान है। इक्कीस से पच्चीस अगस्त तक प्लान किए गए इस पांच दिन के आर्ट शो के दो महत्वपूर्ण दिन प्रभावित हो गए। 22 अगस्त को वकीलों के आह्वान पर जयपुर बंद और 23 अगस्त को छात्रसंंध चुनाव के लिए मतदान के कारण जेएलएन रोड बंद रहा इससे शो में दर्शकों की कमी हो गई। शेष दिनों में आए बायर्स में कोई स्थापित खरीददार नजर नहीं आया। कला बाजार में कारोबार करने की योजना के साथ निकट भविष्य में खुलकर प्रकट होने वाली एक कला दीर्घा की ओर से कुछ खरीददारी के प्रयास जरूर हुए, लेकिन कीमत बहुत कम लगाने के कारण तत्काल कोई बात नहीं बन सकी।
उल्लेखनीय है जयपुर के कला बाजार में पूरी तैयारी के साथ उतरने का जतन कर रही कला दीर्घाओं का ध्यान यहां की सबसे अधिक कारोबार करने वाली उस आर्ट गैलेरी के कारोबार के तरीके पर रहता है जो बंगाल के कलाकारों के काम पर अधिक ध्यान देती है। पिछले दिनों जेकेके में 'ह्यूस ऑफ इंडिया' के नाम से आयोजित शो में भी लगभग 10 बंगाली कलाकारों का काम प्रदर्शित हुआ था और यहां 'ग्रेस ऑफ ऑकेशन' इसी आर्ट गैलेरी की संचालिका थी।
इसके साथ ही थ्रू दी हार्ट आर्ट शो पर जयपुर के कुछ निजी कला संग्रहकों की भी निगाहें जमी थी। इन बायर्स ने स्थापित कलाकारों के बजाय न्यू ब्रश पर पैसा लगाने में अधिक दिलचस्पी दिखाई। उनका मानना है कि स्थापित कलाकारों पर मोटी रकम लगाने और उनके रेट कम हो जाने का जोखिम उठाने से बेहतर है नए कलाकारों पर कम पैसा लगा कर उनके स्थपित होने और काम की कीमत बढऩे का चांस लिया जाए।


शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

जेकेके में भारत के रंगों का उत्सव


जयपुर के जेकेके में भारत के रंगों का उत्सव
मूमल नेटवर्क, जयपुर। स्वतंत्रता दिवस पर जयपुर के जवाहर कला केंद्र की कला दीर्घाओं में दो प्रदशर्नियों का शुभारंभ हुआ इनमें एक कोलकाता के चित्रकार संजय मजूमदार और एक अन्य दिल्ली की कलाकार रजनी किरण झा के संयोजन में प्रदर्शित की गई है।
भारत के इन्द्रधनुषी रंग
ह्यूस ऑफ इंडिया के नाम से किए गए आयोजन में देश के विभिन्न भागों के 33 चित्रकारों की कलाकृतियों को दो दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है। इनमें जयपुर के डा. ललित भारतीय और डा. मणि भारतीय के काम शामिल हैं। इस प्रदर्शनी में डा. मणि भारतीय के पल-पल परिपक्व होते जा रहे कोलॉज के साथ डा. ललित भारतीय के कैनवास पर रंगों का नया संयोजन देखने का अवसर है। संजय मजूमदार ने भारतीय पौराणिक मिथकों के जरिए आज की बात कहने का प्रयास किया है तो राजिब देयासी ने ज्यामितिक आकारों से। राखी बैद ने शंख और मयुर पंख के साथ मंदिर की धंटियों और उसी के समकक्ष घुंघरुओं और देव उपस्थिति से अपनी बात कही है। उनीस खान की पेंसिल और स्वाति चटर्जी की सरल रेखाओं से चित्र प्रदर्शनी में कुछ अलग हट कर होने वाले अहसास भी थे।

रंगोत्सव
जवाहर काला केंद्र की सुदर्शन कला दीर्घा में रंगोत्सव के नाम से आयोजित प्रदर्शनी में कुल 15 चित्रकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं।
सभी कलाकारों की कृतियों में जीवन के विभिन्न रंगों को अपने-अपने भाव से कैनवास पर आकार दिया गया हैै। दीर्घा में तीन मूर्ति शिल्प भी सजाए गए हैं इनमें युवा मूर्तिकार विवेक कुमार द्वारा फाइवर ग्लास से रचित बड़े कानों वाले चींखते हुए व्यक्ति की कृति ध्यान आकर्षित करती है।
 डा. अर्चना श्रीवास्तव द्वारा विभिन्न पर्व व त्यौहारों के अवसर पर बनाए जाने वाले मांडने और सांझियों को कागज पर जलरंगों से उकेरा गया है। डा. रजनी ने स्वयं कैनवास पर एक्रेलिक से जल, जलज, महिला और मछली के संयोजन को बिहार की मधुबनी कला के इर्दगिर्द बुनकर नया संसार रचा है।

सोमवार, 11 अगस्त 2014

HUES OF INDIA


HUES OF INDIA 
EXHIBITION OF VISUAL ART

An exhibition of visual art at JKK JAIPUR, to pay a small tribute to the nation. WE 

could gather 33 artist from all over India speaking different languages, practicing 

different religion and culture. WE feel proud to present such a diversified enriched 

heritage and culture through visual vocabulary. In this connection WE would like to 

make humble request to u to kindly come and join this exhibition on 15th August 2014 

at 4pm. I solicit your kind presence to grace the occasion. 

"HUES OF INDIA " - ABOUT THE EXHIBITION & ARTIST

Golmai is senior artist from Manipur belongs to kabui tribe creates vibration of colourful kabui 

dance. Rabindro's canvas is colourful essay about the holy sages of india. most of the face in 

his works resemble his self portrait, innocent as well as dynamic. Tuiyarmy is rather painting 

on various social causes of his native place. he makes new paper with acrylic on canvas, 

speaking louder than words. Swapan Das from Bengal works on spiritual subject. he works 

on Buddhist and jain mythology. his figures do radiate light or energy,thus the form gets life. 

Eastern Indian artist from west bengal ,cultural capital of india, shows fragrance of their soil. 

Arghya Dipta Kar, young artist experiments on tantric art.he creats very contemporary visual 

on tantric philosophy. we find shree yantra application and many more symbols of yantra in 

his visual. Abhijit Banerjeee pass out of govt college of art too works on durga. his durga has 

more melody and lyrical value. colour application is very vibrant with very strong highlight 

shows the power and energy of shakti. Rina Roy is master of oriental art works on hindu 

mythology. her hues are so very somber can utter spiritual vocabulary. Rajiv Dayashi lives 

in westbengal as well as runs a art school, is basically Khairagarh passout. His paintings do 

have tantra motif but his flower application do reflect his contemporary thought process. the 

paintings have mystic appeal.the dark background with lotus patterns means infinite universal 

sectrets to be yet reveled. this is the creation process. Arup is also from kolkata. Vidya 

Lakshmi from Chennai creates landscapes with oil on canvas. her landscapes has extraordinary 

colour combination, which can easily drive the mind of spectator with myriad fantacy. Dr. 

Velmurugan D. is medical practicener by proffessioen but also a great photographer.he loves 

to freeze the motion of nature with his still camera.his photography on wild life is a definite 

visual delight for the spectators.he has created a niche in photography. Shreepathy from 

tirupati is a very welknown tanjore painter as well as lyric writer in telegu films. his recent 

contemporary works already paved niche in the art world.his mythological subject can easily 

convey some social message. 

Rana Anjum is from hyderbad. her simplicity in her form and ability to use vibrant hues makes 

her works very individulistic. Chandana khan is the special chief secretary of Hyderabad, is 

also welknown visual artist, poet, author. she is very dynamic and multifaceted lady. she plays 

with colour and form in very innocent manner,reminds me of paul klee.most of her works 

show folk derivation. From the western india I have artist Swati chatterjee and Rakhi baied

from Mumbai. Rakhee Baid works mainly on krishna .her works reflects mother and child 

affection.she has already exhibited her works in various gallery.her works are in collection 

with several art connoisseur across the globe. Utpal maumdar from pune is well known for 

his energetic horses. horses symolise men power and human passion.horses are auspicious to 

many community across the globe.moreover I see melancholy of myriad colours that he 

applies on the canvas. Shubhanghiji makes cosmic drama on the canvas.her works can be 

analytically viewed as it has got fathom deep perspective. Anand is delhi based artist ,loves to 

create essay of colours on canvas.he creates amazing texture which generates surface that 

results optical illusion. Abdul kalim’s works have little cubic influence but his subject is derived 

from regular day to day life. Gauri Sahniji reputed senior artist from delhi. her subject is 

mostly spiritual, as she visualises the hindu mythology in modern arena. some of her works 

shows Vishnu or sumtimes just the lotus to symbolize. Lakshmi P. mittal paints with acrylic on 

canvas,has her own style to express her personal feelings.her works sometime are very 

conceptual,may deal with human psyche, some times innocent play of colours. Unis Khan is 

very versatile artist. he keeps social message for the so called civilized people. he boldly 

expressed the male chauvinism. Vincent is well known sport personality is also BFA in from 

CHITRA KALA PARISAT BANGLORE. his works are no doubt sport based. he freeze the sporting 

action in his canvas/paper. some of his painings so powerful that it seems to jump out of his 

canvas.recently I find him working on Indian style dance. Sanjoy Majumder is microbiology 

graduate and self taught artist. he has blended the science and mythology on canvas. recently 

he started kali series. here he has created satire towards society,with symbolic kali. Rajeev 

Semwal is young engrgtic and a very passionate painter.his command over the liner 

perspective is so high that he need no much colour to express his thought process.his ecstasy 

generates fantasy which he represents symbolically.women are predominant subject of his 

works and feminism reflects from few of his creation.

I am proud to present two very important artists from JAIPUR, Dr. Lalit Bhartiya and Dr. 

Mani Bhartiya. Dr. Mani Bhartiya is collage artist needs no introduction. her collage depicts 

landscapes.she also works on the burning social issues,like rejection of old people,old culture 

etc. Dr. Lalit Bhartiya paints on canvas very primitive subjects.some of his works shows marks 

of ancient cave paintings of BUNDI at Rajasthan.his command over strokes and colour shows 

his skill in draftsmanship, which is now so rare.

SANJOY MAJUMDER, KOLKATA (CURATER AND CONCEPTUALIZER) MOB.08981148782

DR. LALIT BHARTIYA (LOCAL REPRESENTATIVE OF EXIBITION) MOB. 9829014153 

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

जयपुर में पांचवां रंग मल्हार


कारों को बनाया कलाकृति 
मूमल नेटवर्क, जयपुर। गुलाबी नगर मेें मानसून के स्वागत सत्कार के लिए अपनी अलग पहचान बना चुके ''रंग मल्हार'' के पांचवे आयोजन में कलाकारों ने कारों को कलाकृतियों का रूप दिया।
राजस्थान ललित कला अकादमी के सौजन्य से आयोजित यह कार्यक्रम आज गुरूवार को झालाना स्थित अकादमी परिसर में हुआ।
वरिष्ठ चित्रकार विद्यासागर उपाध्याय के संयोजन में लगभग 80 से अधिक कलाकारों ने एक दर्जन कारों पर अपने मनोभाव उकेरे। अधिकांश कलाकारों ने प्रकृति, पर्यावरण, मानसून और जयपुर शहर को अपना विषय बनाया। मेघ मल्हार और पानी में बच्चों की छपाक-छई को भी जीवंत किया गया। शहरी व्यस्तता और जयपुर के रास्तों की गहमा-गहमी को भी अनके चित्रकारों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
एक पुरानी फीएट को नवग्रह और राशियों से सजाया गया। इसमें शब्द और नाद को भी समाहित किया गया। इस कार पर वरिष्ठ चित्रकार श्वैत गोयल के साथ रवीन्द्र शर्मा 'माइकल' व शीतल चितलांगिया ने अपनी कला और सोच के जौहर दिखाए।
इतिहास के पन्नों को स्वयं में समेट कर जयपुर की पुरानी रियासती बही खातों और राजशाही मोहरों से सजी मारुति कार को वरिष्ठ चित्रकार विनय शर्मा और उनके साथी चित्रकारों ने चित्रित किया। चित्रकार नवल सिंह चौहान ने कला शिक्षा को अपना विषय बनाया
कारों को कलाकृतियों को रूप लेते हुए देखने को दोपहर की कड़ी धूप में भी कलाप्रेमियों की भीड़ उमडऩे लगी। शाम होते-होते कला विद्यार्थियों व फोटोग्राफरों की रेल-पेल से कलाकारों को काम करने के लिए जगह तलाशते भी देखा गया। रंग मल्हार के इस आयोजन में वरिष्ठ चित्रकार भवानी शंकर शर्मा, आर.बी. गौत्तम, अर्जुन प्रजापति, विनोद भारद्वाज, शब्बीर हसन काजी, समदर सिंह खंगारोत, लाल चन्द मारोठिया, नाथूलाल वर्मा, कैलाश शर्मा, शिवशंकर शर्मा गौरी शंकर, श्वेत गोयल, वीरबाला भावसार, मीनू श्रीवास्तव, अदिति अग्रवाल, लोकेश शर्मा, हरप्रीत कौर छाबडा, डा. संगीता सिंह, हरशिव शर्मा, सुधीर वर्मा, सुरेन्द्र सिंह, नवल सिंह चौहान, सोहन जाखड़, लाखन सिंह जाट, रवि शर्मा, शीतल चितलांगिया, किशोर सिंह, प्रेम सिंह चारण, भीम सिंह हाडा, विनय शर्मा, मनीष शर्मा शामिल थे। यह पहला मौका था जब रंग मल्हार में इतनी बड़ी संख्या में कलाकार जुटे।
शुक्रवार को रैली
शुक्रवार की शाम को इन चित्रित कारों को रैली के रूप में नगर के प्रमुख मार्गों में प्रदर्शित किया जाएगा। लगभग शाम को चार बजे राजस्थान ललित कला अकादमी से रवाना होकर इन चित्रित कारों का काफिला पहले जवाहर कला केंद्र पर जाकर ठहरेगा। उसके बाद राजस्थान विश्व विद्यालय से होता हुआ अलबर्ट हॉल म्यूजियम, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया, बड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, सांगानेरी गेट और रवीन्द्र मंच से होता हुआ जवाहरलाल नेहरू मार्ग शिक्षा संकुल स्थित राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट तक जाएगा।













बुधवार, 9 जुलाई 2014

पांचवा रंग मल्हार 10 जुलाई को

कलाकार कारों पर करेंगे पेंटिंग्स
मूमल नेटवर्क, जयपुर। बरखा की फुहारों को आमन्त्रित करने, उनका स्वागत करने के लिए जयपुर के कलाकार रंग मल्हार का आयोजन करने जा रहे हैं। इस बार रंग मल्हार कार्यक्रम का आयोजन  राजस्थान ललित कला अकादमी के सहयोग से झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित अकादमी संकुल में दिनांक 10 जुलाई, 2014 को प्रातः 10.00 बजे से किया जाएगा।
प्रति वर्ष वरिष्ठ कलाकार विद्यासागर उपाध्याय के संयोजन में होने वाले  इस कार्यक्रम के अन्तर्गत इस बार राज्य के प्रतिष्ठित लगभग 60 वरिष्ठ एवं युवा चित्रकार अपनी-अपनी शैली में कारों को अलग-अलग विषयों पर चित्रित करेंगे। ऐनामल एवं स्प्रे कलर के माध्यम से प्रकृति, सामाजिक चेतना, पर्यावरण, स्थापत्य आदि विषयों पर अपने भावों को प्रदर्शित करेंगे। कलाकार दस कारों पर प्रकृति के संरक्षण का संदेश देते हुए ग्रीन सिटी, हैरिटैज, एस्ट्रोलोजी और लाइफ, व पशु-पक्षियों को अपनी कूंची से आकार देंगे। इन कारों को शहर के शॉपिंग मॉल्स व स्कूल-कालेज के बाहर प्रदर्शित किया जाएगा।
प्रदर्शनी अधिकारी विनय शर्मा के अनुसार सन 2010 में इस उत्सव की शुरुआत कलाकारों ने छतरियों पर कलाकृतियां बनाने से की। इसके बाद 2011 में हैट, 2012 में मास्क और 2013 में बच्चों की फिरकियों को रंग कर रंग मल्हार मनाया गया था। इस अनूठे अनुष्ठान में राज्य के कलाकार पूर्ण हर्षोल्लास के साथ अपनी भागीदारी निभाते आ रहे है ।इस बार कारों पर चित्रण कर कलाकार अपने फन और रंगों से इन्द्र देवता को प्रसन्न करेंगे। अगले दिन इन कारों का मुख्य सड़कों पर रैली के रूप में प्रदर्शन किया जायेगा ।

बुधवार, 2 जुलाई 2014

Kripal Singh Shekhawat



Kripal Singh Shekhawat was a renowned craftsman and ceramist of India. He was famous for his skills in Blue Pottery of Jaipur and is credited for the revival of that art in India.
Life and career
Born in the western Indian state of Rajasthan in 1922, he studied original painting at the Shanti Niketan in West Bengal and later did a diploma in Oriental Arts from the Tokyo University, Japan.
He was also the director of Sawai Ram Singh Shilpa Kala Mandir at Jaipur where he taught Indian painting and Blue Pottery.
He was conferred the Padma Shri in 1974 and was also honoured with the title Shilp Guru by the Government of India in 2002. Unknown to many, Kripal Singh is renowned for his illustrations in the original document of the Constitution of India.He died on February 15, 2008 in Jaipur.
Art
A distinguished traditional artist, Kripal Singh's paintings are poetic. They carry the expression of the traditional and early styles of painting with bold innovations in a delicate and refined manner. His works also claim an important historical place in the organic evolution of traditional paintings. There is no one who can create his style of painting with great detail he has shown the birds, clothes, animals flowers which shows the dedication with which he creates a real painting.
Legacy
He revived the art of blue pottery, with the help of patrons such as Kamladevi Chattopadhyay and Rajmata Gayatri Devi. He learnt all the secrets of the nearly extinct art as it had been perfected in Jaipur in the 19th century, and made many changes to make it a modern practice. His hard work helped re-establish an entire tradition.Despite rumours to the contrary, Kripal Kumbh, the pottery studio founded by Kripal Singh Shekhawat is still in operation. It is run by his wife Sajjan Kanwar assisted by her three daughters, Minakshi, Himani and Kumud Rathore.
Works
Sharma, Bhawani Shankar, and Kripal Singh Shekhawat. 2007. Kripal Singh Shekhawat: virtuoso of line and colourNew Delhi: Lalit Kala Akademi. Chiefly color reproductions of the works of Indian artist Kripal Singh Shekhawat; includes brief biographical and critical text.
Khandalavala, Karl J., and Kripal Singh Shekhawat. 1974. Wall paintings from AmberNew Delhi: Lalit Kalā
Akademi. Portfolio comprising copies of the now damaged murals made by Kirpal Singh Shekhawat.

“A distinguished traditional artist, Kripal Singh's paintings are poetic. They carry the expression of the traditional and early styles of painting with bold innovations in a delicate and refined manner. His works also claim an important historical place in the organic evolution of traditional paintings. There is no one who can create his style of painting with great detail he has shown.”

Kripal Singh Shekhawat, also known as father of Blue Pottery, was born in a Rajput family on
19th December 1922, in a small village named Mau, Rajasthan, INDIA.

Kripal Singhji’s first formal training in drawing and painting was under Sh. Bhur Singh Shekhawat, and then in
Lucknow.

Kripal Singhji studied original painting at the Shanti Niketan in
West Bengal and later did a diploma in Oriental Arts from the Tokyo University, Japan.

He revived the art of blue pottery which had become dead. He made many changes with the designs and also came up with new shades of green, yellow, brown, black etc. It was only due to his innovative work that the blue pottery has acquired the fame it has, today.

For his tremendous contribution to blue pottery, Kripal Singhji was conferred the “Padma Shri” in 1974 and was also honoured with the title “Shilp Guru” by the Government of India in 2002. Unknown to many, Kripal Singhji is renowned for his illustrations in the original document of the Constitution of India.

Other than the above mentioned awards, he was awarded Fellowship of Calcutta Art Society in 1950. Was awarded five times between 1957 to 1961 by
Rajasthan Lalit Kala Academy. In 1967, Kripal Singhji was conferred with President Award of “Master Craftsman” As one of the top ten craftsman of the world, Kripal Singhji was invited by World Craft Council to New York. In 1990, government of Rajasthan conferred the title of “Rajasthan Shree” on Kripal Singhji. He was also awarded with awardsa like, Kalidas Academy Award, Kalavid, Sanskriti Samman, Maharana Sajjan Singh Award & Kala Vibhushan.

Kripal Singhji work can be found at various prominent places like, National Gallery of Modern Arts (
New Delhi), Lalit Kala Academy (New Delhi), National Museum (New Delhi), IGI Airport (New Delhi), Jawahar Kela Kendra (Jaipur), King of Nepal Collection, President House in Sri Lanka, World Bank (New York), Japan Atomic Energy (Japan) and numerous other places.

During his lifetime, Kripal Singhji held many important designations like, Art Teacher at Shanti Niketan (1948-1951), Director of Sawai Ram Singh Shilpa Kala Mandir, Director of Bank of Baroda (1977-1981), Director of Rajasthan Small Scale Industries (1981-1991), Chairman of Rajasthan Lalit Kala Academy (1997-1999) and many more.

Some of the mural work Kripal Singhji undertook were, Bharat Carries Rama’s Sandals (1945), Life of Gandhi (1955-1958), in the fresco technique at Birla House.






About Blue Pottery
The art of making blue glaze pottery came to Rajasthan via Kashmir, their entry point into India. The name comes from the eye-catching Persian blue dye used to color the clay. The Jaipur blue pottery, made out of Egyptian paste, is glazed and low-fired. Some of this pottery is semi-transparent and mostly decorated with animal and bird motifs. Being fired at very low temperature makes them fragile. The range of items is primarily decorative, such as ashtrays, vases, coasters, small bowls and boxes for trinkets. The colour palette is restricted to blue derived from the cobalt oxide, green from the copper oxide and white, though other non-conventional colours, such as yellow and brown are sometimes included.

The use of blue glaze on pottery made from Multani mitti, or Fuller’s earth,[dubious – discuss] is an imported technique, first developed by Mongol artisans who combined Chinese glazing technology with Persian decorative arts. This technique travelled south to
India with early Muslim potentates in the 14th century. During its infancy, it was used to make tiles to decorate mosques, tombs and palaces in Central Asia.

Later, the Mughals began using them in
India to mimic their structures from beyond the mountains in Samarkand. Gradually the blue glaze technique grew beyond an architectural accessory to Kashmiri potters. From there, the technique traveled to the plains of Delhi and in the 17th century went to Jaipur. The rulers of Jaipur were partial to blue-glazed ware, and many marble halls in Rambagh Palace have fountains lined with blue tiles. These tiles were also used in the building of the city of Jaipur, but they disappeared soon after.

 About 'Fresco'
The word ‘fresco’ is originally Italian and literally means ‘fresh’ and the art of
fresco painting actually involves painting on walls which are fresh well plastered. No binding agents are used and the colours are mixed with water. These are then directly applied to the surface. Thus the colours sink well into the plastered surface and results in the creation of a colour which is sort of glowing. This effect is not achieved when painting on usual dry plaster. It is because of this very effect created that fresco paintings are directly done on walls rather than on paper and then glued to another surface.
Fresco Painting
Fresco Painting in Mandawa Havelies, Rajasthan, India
A Short History
There is some dispute regarding which is the earliest form of fresco found. From what has been found till date, the earliest examples goes back to about 30,000 years. Some historians believe that the earliest known examples are from the island of Crete in Greece. Others opine that the earliest examples are found in Chauvet cave in France. Some other places where fresco paintings have been found include Egypt, Morocco, Spain, Altamira, France and Lascaux. Historians have found some evidence which has led them to believe that there was possibly some trade with these paintings from Crete thus leading to the conclusion that fresco painting was thus a very important art form at that time. The Egyptian tombs showcase some of the finest fresco paintings of the world.

Fresco in the church Mariä Verkündigung in Fuchstal, Germany
Fresco in the church Mariä Verkündigung in Fuchstal, Germany
Fresco paintings depict images from the daily lives of people, to what they do in their afterlives as well as a lot of images from the Bible and other religious texts. Churches and cathedrals under the Eastern Orthodox Christianity are good examples of this kind of illustrations from the Bible. The leading fresco painters of the Russian medieval age include the Greek artist Theophanes, Andrei Rublev and Dionysius. The artist Giotto led the trend of mixing this Byzantine art form with the Gothic, leading to the Proto-Renaissance.
Types of Frescoes 
The two most used forms of fresco paintings are the Buon fresco and the Secco. The Buon fresco style involves the mixture of pigment with only water. A binding material is not required since this is applied on a thin layer of wet lime mortar or plaster and this wet nature holds the colour. A chemical reaction occurs when this colour applied plaster reacts with air. Secco paintings on the other hand are done on dry plaster. Hence, a binding material such as egg or oil or glue is used so ensure that the pigment sticks to the wall. Historians say that secco paintings became popular during the Middle Ages. Buon frescoes by their very nature last longer than secco. Also, secco paintings are often done over buon frescoes to add little details or to make some changes.   All art forms are influenced by the development and changes in the others. The same is true for fresco paintings as the superior form of art that is reflected in these paintings led to the overall refinement of the art of painting. The chemical reaction forms an important part of fresco painting and this takes about six to twelve hours. The biggest challenge with fresco paintings is they do not allow correction. Hence, only highly skilled artists are able to create fresco works and these eventually become historical pieces. They are thus representatives of rich histories. They signify the cultural roots of the country and remain intact for centuries. 

शुक्रवार, 27 जून 2014

Ramgopal Vijayvargiya

Ramgopal Vijayvargiya
He was born in 1905 at Baler Sawai Madhopur district in Rajasthan state in India. He was Principal of Rajasthan Kala Mandir and Rajasthan School of Art from 1945 to 1966. He was awarded the Padma Shri in 1984.
His first exhibition was held in 1928 at Fine Arts & Crafts Society, Calcutta and thereafter many in other major cities of India.
Awards : Maharaja Patiala, 1934; Rajasthan Lalit Kala Akademi, 1958; Padmasri, 1984. Fellow, Lalit Kala Akademi, New Delhi, 1988. In 1998 he received the honour of ’Sahitya Vachaspati’ from Hindi Sahitya Sammelan, Prayag.

Ramgopal Vijayvargiya was Principal, Rajasthan School of Arts & Crafts, Jaipur, 1961-66. Vice President, Rajasthan Lalit Kala Akademi, 1958-60. His first exhibition was held in 1928 at Fine Arts & Crafts Society, Calcutta and thereafter many one-man shows in major cities of India. Awards : Maharaja Patiala, 1934; Rajasthan Lalit Kala Akademi, 1958; Padmasri, 1984. Fellow, Lalit Kala Akademi, New Delhi, 1988; the Akademi organised a retrospective spanning 40 years of his art experience. He is also known as a poet and a writer. Publications on him include: 'Vijayvargiya Picture Album', 1934; 'Meghdoot Chitravali' 1945; 'Behari Chitravali', 1945; 'Rajasthani paintings', 1952; Monograph published by Lalit Kala Akademi, 1988; 'Roopankar' (his biography), 1991 and volume II 'Paintings' 1995. In 1997 a 'Retrospective' was held at Kumar Gallery, New Delhi. In 1998 he received the honour of 'Sahitya Vachaspati' from Hindi Sahitya Sammelan, Prayag.

Ramgopal Vijaivargiya was born in 1905 at Baler, Sawai Madhopur, Rajasthan. When he was a young boy he was so impressed by the work of a wandering Sadhu, drawing rural scenes in red and blue pencil that Vijaivargiya decided to become an artist. He was encouraged by his father in this endeavor; he enrolled himself at the Maharaja School of Art Jaipur and at the age of eighteen finished a five year course in eight months under the guidance of Shailendranath De. In the next five years he had developed his own distinct style in the tradition of the Bengal School.

He also displayed a great talent for literature and poetry. He drew the thematic inspiration from the Ramayana and the Mahabharata epics, tales from the Jatakas (Buddha's Life) and Ragamala-Indian classical music. Being a poet, he chose subjects from Kalidasa's, Meghdoota (cloud messenger), Raghuvamsa, Shakuntalam and Kumar Sambhava; Jai Deva's, Geet-Govinda and Keshav's Rasikpriya. Many of his excellent works were based on the sensuous poems of the Persian poet's series on Gulistan, Bostan and Deewan-i-Hafiz and Rubaiyat of Omar Khayyam.

Right from those early years, until the end of his long life (2003), Vijaivargiya enriched the world of Indian art and literature. His art, essays and poems appeared in many magazines, including the renowned Modern Review, which regularly published works of the master artists.

There have been numerous exhibitions of his work in the major cities, the first of which was held in 1933. Lalit Kala Akademi Delhi held a retrospective in 1983 and published a Monogram in 1988. Among the various albums of his paintings are two Felicitation Volumes, Rupankan (1995), wherein Dr. Vijay Shankar Srivastava writes:

“The desire to be creative, to produce something new became the way of the life of Vijaivargiyaji. He is always enterprising in his creations- be it literary or artistic. In him is an excellent urge and aptitude to give expression to new ideas and forms through pen and brush. A wonderful balance of tradition and creativity became the symphony of his works. The originality and uniqueness coupled with the delicacy of his lines is only excelled by the swiftness with which he draws them…”

In this collection of 50 works, Buddha, Abhisarika-Meghdoota, Radha-Krishna-Geet-Govinda all reflect Vijaivargiya's typical early style of romantic innocence. His rendering from Omar Khayyam is masterly drawn, in a manner that owes little to the classical way of drawing but instead expresses a free spirit that was so distinctive of this master artist. He drew lines as if he was composing a poem. Although he retained his stylistic roots, he evolved a vibrant palette, here it is reflected in the Trees in Bloom, contemporaneity came natural to him. Vijaivargiya remained lively, vivacious and innovative, constantly changing in tune with the time. He was an acclaimed artist for more than 80 years. This exhibition is a tribute to a master who made an indelible impact on Indian Art and Culture.
Some work by Ramgopal Vijayvargiya
Apsara


'Nal Damyanti' 

Meghdoot 1 1955

Yakshani Meghdoot 1995


'Pratiksha' 1996

'Urmila & Muni Vashistha' (1972)

'Ragini Todi' 

'Fruit seller' 

'Village Women'  1995

'Girl Dressing' (1992)