रविवार, 24 अगस्त 2014

थ्रू दी हार्ट में बंगाली कलाकारों का बोलबाला


मूमल नेटवर्क, जयपुर। देशभर के करीब 40 चित्रकारों ने दिल से कही जाने वाली भाषा को कैनवास पर आकार दिया और उन्हें पिछले दिनों गुलाबी नगरी जयपुर में 'थ्रू दी हार्ट' के नाम से प्रदर्शित किया। इनमें राजधानी दिल्ली सहित पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व झारखंड के कलाकार शामिल है। पड़ौसी देश नेपाल और बांग्लादेश के एक-एक कलाकारों की भागीदारी के चलते इसे इंटरनेशनल आर्ट शो शो किया गया।
प्रदर्शनी का उद्धाटन वरिष्ट कलाकार डा. चिन्मय मेहता ने किया। इस आर्ट शो में पश्चिम बंगाल के 19 कलाकारों सहित अन्य क्षेत्रों से शामिल 5 अन्य बांग्लाभाषी कलाकारों के कारण बंगाली कलाकारों के काम का बोलबाला रहा।
नई दिल्ली के राजिब सिकदार ने जीवन की उपलब्धियों को मिक्स मीडिया के जरिए दर्शाया है। पश्चिम बंगाल के नादिया में जन्में सिकदार फ्रिलांस आटिस्ट हैं। आईफेक्स से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित राजिब ने बताया कि इस प्रदर्शनी के प्रमुख के रूप में वे जयपुर में उपस्थित हैं। देशभर से इस शो में शामिल चित्रकारों के यह काम इससे पहले भी कई शहरों में प्रदर्शित किए जा चुके हैं। अब जयपुर के बाद अगला शो बंगलूर में आयोजित होगा।

कोलकाता की एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट से सम्मानित राजर्षि अधिकारी ने सिल्क पर जलरंगों से पौराणिक देवी-देवताओं के साथ प्रकृति चित्रण किया है। 'वाटर गार्डन' शीर्षक के साथ एक जल कुंड की प्रकृति को बेहतर रूप से दर्शाया है। देवी दुर्गा और दुर्गा परिवार का जल विहार भी बेहतर बन पड़े हैं। गोपियों के वस्त्रों के साथ वृक्ष की शाखा पर बांसुरी वादन करते कृष्ण का चित्रण भी मन मोहक है।
कोलकाता के शुभेन्दु विश्वास ने मिक्स मीडिया में कैनवास पर जीवन के आरंभ को प्रदर्शित किया है। उन्होंने मां के गर्भ से ही एक बालक की उड़ान के प्रति रुचि को बखूबी संयोजित किया है।
छत्तीसगढ़ के पूणेन्दु मंडल ने कैनवास पर एक्रेलिक रंगों से कोलकाता के आधुनिक शहरी जीवन की हलचल में आज भी सांस लेती पुरानी ट्रामों के इन्क्लूजन को कुशलता से उभारा है।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित झाडखंड से आई विनीता बंद्योपाध्याय के स्वभाव में कल विरासत को संभालने के साथ आज को सहेजने की झलक दिखती है। यही सबकुछ उनकी चित्रकारी में भी साफ झलकता है। उडि़सा की पारम्परिक वॉल पेंटिग्स की आकृतियों के साथ आधुनिक परिवेश व मुखौटों से वे अपनी बात कहती लगती हैं।
कोलकाता की रिनी चन्द्रा के चित्रों में मानव जीवन काल में बनते-बदलते रिश्ते और अहसास के मौसम नजर आए। उनकी कृति 'ऑटम' में शरद के पतझड़ से दरकते संबंधों का बेहतर चित्रण हैं। बहुत सरल रंगों, रेखाओं और आकृतियों से अपनी बात कहने की क्षमताओं वाले रिनी के चित्रों की सादगी आकृर्षित करती है।
पश्चिम बंगाल के गौतम शाहा मानव मन में होने वाली हलचल और सोच को आधुनिक जामे के साथ कैनवास पर साकार किया है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो को गहरे गॉगल्स, इयर फोन और मेडिकल माक्स से दर्शाने की सोच इनके काम में शामिल है। पुरातन वीणा के तारों की झंकार का डिजिटल साउंड की वायरिंग की रिकॉडिंग से उपजी स्थिति की एक सुधि दर्शक ने प्रवीण और कुशल जैसे शब्दों की निरुक्ति से व्याख्या कर एक बार फिर यह साबित किया कि दर्शक की सोच कलाकार की सोच से कहीं अधिक आगे हो सकती है।
इन्हीं के साथ कोलकाता के राहुल मुखर्जी ने अपनी कृति में मरणोपरान्त आत्मिक सोच को आकार देने का प्रयास किया है। जबकि चौबीस परगरना की पॉलोमी सेन ने दुर्गा रूपा स्त्री शक्ति को मछली पकडऩे के कांटों में उलझ कर पहचान खोती जा रही बेबस आकृति के रूप में दिखाया है। नजमा अख्तर व डॉ. बुशरा नसीम का काम भी सराहनीय था।
कारोबार
इन दिनों राजस्थान मेंं बंगाली चित्रकारों की सोच और तकनीक की ओर दर्शकों और बायर्स का खास ध्यान है। इक्कीस से पच्चीस अगस्त तक प्लान किए गए इस पांच दिन के आर्ट शो के दो महत्वपूर्ण दिन प्रभावित हो गए। 22 अगस्त को वकीलों के आह्वान पर जयपुर बंद और 23 अगस्त को छात्रसंंध चुनाव के लिए मतदान के कारण जेएलएन रोड बंद रहा इससे शो में दर्शकों की कमी हो गई। शेष दिनों में आए बायर्स में कोई स्थापित खरीददार नजर नहीं आया। कला बाजार में कारोबार करने की योजना के साथ निकट भविष्य में खुलकर प्रकट होने वाली एक कला दीर्घा की ओर से कुछ खरीददारी के प्रयास जरूर हुए, लेकिन कीमत बहुत कम लगाने के कारण तत्काल कोई बात नहीं बन सकी।
उल्लेखनीय है जयपुर के कला बाजार में पूरी तैयारी के साथ उतरने का जतन कर रही कला दीर्घाओं का ध्यान यहां की सबसे अधिक कारोबार करने वाली उस आर्ट गैलेरी के कारोबार के तरीके पर रहता है जो बंगाल के कलाकारों के काम पर अधिक ध्यान देती है। पिछले दिनों जेकेके में 'ह्यूस ऑफ इंडिया' के नाम से आयोजित शो में भी लगभग 10 बंगाली कलाकारों का काम प्रदर्शित हुआ था और यहां 'ग्रेस ऑफ ऑकेशन' इसी आर्ट गैलेरी की संचालिका थी।
इसके साथ ही थ्रू दी हार्ट आर्ट शो पर जयपुर के कुछ निजी कला संग्रहकों की भी निगाहें जमी थी। इन बायर्स ने स्थापित कलाकारों के बजाय न्यू ब्रश पर पैसा लगाने में अधिक दिलचस्पी दिखाई। उनका मानना है कि स्थापित कलाकारों पर मोटी रकम लगाने और उनके रेट कम हो जाने का जोखिम उठाने से बेहतर है नए कलाकारों पर कम पैसा लगा कर उनके स्थपित होने और काम की कीमत बढऩे का चांस लिया जाए।


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