राजा के दरबार में अन्य गुणी कलाकारों में एक चित्रकार भी थे। नाम था निहाल चंद। वे विभिन्न अवसरों पर किसी न किसी रूप में राजा के साथ इस दासी को चित्रित करते रहते थे। कहते हैं एक बार राजा ने दासी को रानियों जैसे वस्त्र और अलंकरण धारण करा के सजाया और स्वयं एकांत में उसका एक चित्र बनाया। राजा ने इसे नाम दिया 'बणी-ठणी'। वह चित्र कैसा बना, यह कभी किसी को पता नहीं चला। जब राजा ने अपनी यह कृति दरबार के चित्रकार निहाल चंद को दिखाई तो राज चित्रकार ने उसमें कुछ संशोधन बताए। बाद में राजा ने वह चित्र अपने चित्रकार से भी बनवाया और वही चित्र सार्वजनिक किया गया।
आज हम जो 'बणी-ठणी' देखते हैं वह किशनगढ़ के राज चित्रकार निहाल चंद की ही कृति है, जो महाराज ने अपने समक्ष बनवाई और उसमें कई सुधार कराए और स्वयं भी किए। राजा सावंत सिंह की तरह चितेरे निहाल चंद को भी अपने चित्रों का विषय बनाने के लिए राजा की प्रिय दासी सर्वोतम व आदर्श माडल लगती थी। निहाल चंद की 'बणी-ठणी' बहुत लोकप्रिय हुई, लेकिन राजा सावंत सिंह की मूल 'बणी-ठणी' कृति को फिर कोई नहीं देख पाया।
कहते हैं राजा ने अपने अंतिम समय तक उस कृति को अपने साथ रखा और अंत से पूर्व उसे नष्ट कर दिया। आज हम राजस्थानी सौन्दर्य और शैली का प्रतीक बनी 'बणी-ठणी' का जो छविचित्र देखते हैं, वह सोलह आने यर्थाथ है। यह अभिज्ञान सही व सत्य है। राजा के जीवन की तरह निम्बार्क के द्वैताद्वैत और बल्लभ के पुष्ट अद्वैत का संगम 'बणी-ठणीÓ में भी हो गया। इस छविचित्र के बाद दासी का यही नाम सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। जीवन की संध्या बेला में 'बणी-ठणी' राजा के साथ वृंदावन में जाकर रहने लगी और वहीं उन दोनों का देहांत हुआ।
आज हम जो 'बणी-ठणी' देखते हैं वह किशनगढ़ के राज चित्रकार निहाल चंद की ही कृति है, जो महाराज ने अपने समक्ष बनवाई और उसमें कई सुधार कराए और स्वयं भी किए। राजा सावंत सिंह की तरह चितेरे निहाल चंद को भी अपने चित्रों का विषय बनाने के लिए राजा की प्रिय दासी सर्वोतम व आदर्श माडल लगती थी। निहाल चंद की 'बणी-ठणी' बहुत लोकप्रिय हुई, लेकिन राजा सावंत सिंह की मूल 'बणी-ठणी' कृति को फिर कोई नहीं देख पाया।
कहते हैं राजा ने अपने अंतिम समय तक उस कृति को अपने साथ रखा और अंत से पूर्व उसे नष्ट कर दिया। आज हम राजस्थानी सौन्दर्य और शैली का प्रतीक बनी 'बणी-ठणी' का जो छविचित्र देखते हैं, वह सोलह आने यर्थाथ है। यह अभिज्ञान सही व सत्य है। राजा के जीवन की तरह निम्बार्क के द्वैताद्वैत और बल्लभ के पुष्ट अद्वैत का संगम 'बणी-ठणीÓ में भी हो गया। इस छविचित्र के बाद दासी का यही नाम सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। जीवन की संध्या बेला में 'बणी-ठणी' राजा के साथ वृंदावन में जाकर रहने लगी और वहीं उन दोनों का देहांत हुआ।
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