शेखावाटी हवेलियों के चित्रों पर ढूँढारी व कम्पनी चित्रकला का प्रभाव
यह लेख लेखिका डॉ. कनुप्रिया कुमावत के शोधपत्र कुमावत कलाकारों का योगदान व चेजारा चितेरों द्वारा शेखावाटी के हवेलियों के चित्र व चित्राकनों पर अंग्रेजों का प्रभाव से लिए गए कुछ अंश है। लेखिका ने यह शोधपत्र राजस्थान स्कूल आफ आर्ट की तरफ से कनोडिया कॉलेज में
31 जनवरी से 3 फरवरी तक हुए सेमीनार में पढ़ा था।
ढूँढारी चित्रकला का अनुकरण ठिकानों में भी हुआ है। ईसरदा, सिवाड़, झिलाय, चौमू, मालपुरा, सामोद में भी कलाकारों ने भित्ति चित्रण किये। इनका प्रभाव हमको शेखावाटी क्षेत्र के हवेलियों में भी स्पष्ट नजर आता है। यूं तो शेखावाटी अपने को जयपुर से स्वतंत्र मानकर चलता था, पर चित्राकन के विषय में वह जयपुर से बेहद प्रभावित नजर आता है। 1947 तक शेखावाटी जयपुर की रियासत का एक हिस्सा था । शेखावाटी में अधिकतर हवेलियों का निर्माण 19 वीं शताब्दी के मध्य ओर उत्तराद्र्ध में किया गया था।
चित्रो के विषय में - रामायण , महाभारत, कृष्ण लीला, शिवपार्वती, ढोलामारू को लिया गया है। रगों में नीला (देशी नील), हरा (हरा पत्थर , सीलू), लाल (गेरू व सिंगरफ) जैसी प्राकृतिकरगों का प्रयोग किया गया है। इन चित्रों का निर्माण 19 वीं शताब्दी के मध्य या उत्तराद्र्ध में होने के कारण इन पर यूरोपीय प्रभाव भी अधिक रहा है। शेखावाटी के सेठ कलकत्ता में रहकर यूरोपीय जीवन से भली भांती परिचित हो गये थे। इन्होने यहां अपनी हवेलियां बनाई और उन्हें चित्रों से सुसज्जित किया। जैसे लक्ष्मणगढ में झुन्झुनू वालों की हवेली, मुकुन्दगढ में नागलियो की हवेली, झुन्झुनू में टीबड़े वालों की हवेली, ईसरदास मोदी की हवेली, चूड़ी अजीतगढ में नेमाणियों की हवेली, चुरू में कोठारीयों की हवेली इसके अतिरिक्त - सीकर, नवलगढ, मण्डावा, फ तेहपुर, रामगढ, लक्षमणगढ, रानोली, वैध की ढाणी, सीकर, खाटूश्याम जी में भी कई हवेलियां है।
शेखावाटी क्षेत्र में हमें धार्मिक चित्र, सामंती, श्रगांरिक चित्र, लोकजीवन पर चित्र और कंपनी शैली के समिश्रित चित्र देखने क ो मिलते हैं । सीकर मे मिले धार्मिक चित्रों में रामकृष्ण लिलाऐं, रामगढ की हवेली मे ब्रम्हा जी का चित्र जिसमे दाढी मूंछे हैं। सेठों की हवेली मे लोकजीवन, दरबारी चिंत्राकन , गांवों व कस्बो का चित्र, ऊॅ ट, हाथी, घोड़े, भाले, तीर-तलवार व शस्त्र तो कहीं झूला झूलती स्त्रीयां भी हैं।
इन हवेलियों में अंग्रेजों के प्रभाव का गहराई से अवलोकन करें तो सीकर के ठिकानेदार माधवसिंह ने 20 जून 1897 विक्टोरिया जुबली हॉल बनवाया। यहां के अभिलेख कहतें है कि विक्टोरिया के शासन के 60 साल पूरे होने के उपलक्ष्य मे यह हॉल बनवाया गया था। सेठ साहूकारों ने उदारतापूर्वक कलाकारों व चित्रकारों को आश्रय देकर कला को जीवित रखने व विकसित करने में अपना योगदान दिया।
शेखावाटी क्षेत्र में अधिकंाशत ढूँढारी और कंपनी दोनो ही शैली का चित्रण हुआ है।
यहां रेल का प्रचलन पहली बार 1916 में हुआ। लेकिन 1865 व 1899 में बने दो भित्ति चित्रों में रेल का चिंत्राकन किया गया हैं। 1865में रामगढ में रामगोपाल पोदर की हवेली में काले रगं का ईंजन व लाल रंग के डब्बों को चित्रित किया गया। ड्राइवर व खलासी अंग्रेजी वेशभूषा मे हैं । सर पर टोप पहने हैं। पहिए बड़े आकार के, मुसाफि र अलग-अलग वेशभूषा में दिखलाए गयें है।
नीम का थाना में शिव नारायण प्रसाद पटवारी की हवेली में रेलगाड़ी का चित्र 1899 का हैं। रामगढ की पोद्दार की हवेली में इग्लण्ै ड की महारानी मैरी और जॉर्ज पचंम के आगमन के चित्र हंै। चार पहियों वाली व दो पहियों की गाडी़ के चित्र, 1890 में लक्षमणगढ के बद्रीदास वैद्य की हवेली के भित्ति चित्रो में अग्रेजी वेशभूषा पहने साईकिल सवार, 1890 में मंडावा में हवाई जहाज का चित्र, 1900 में नागरमल सेठ की नेमानी की हवेली मे कार के चित्र मिलते हैं।
शेखावाटी के चितेरे
भित्ति चित्रण की इस समृद्धशाली परम्परा मे चित्रकारों का नाम और समाज में एक स्थान था। वे कोई गुमनाम चितेरे नहीं थे। इनमे नवलगढ के चितेरे- स्व. प्रताप जी बेडवाल, स्व.लादूराम जी बबेरवाल, स्व.मांगीलाल जी घोड़ेला। मण्डावा के चितेरे स्व.मुरलीधर जी तोंदवाल, स्व.हनुमान जी सिरसवा, फ तेहपुर व रामगढ के चितेरे स्व.राधेश्याम तूनवाल, स्व.आशाराम जी तूनवाल थे। इसके साथ रामलाल कुमावत, मूलचन्द कुमावत, गजानन्द तूनवाल इत्यादि चित्रकारों के नाम भी शामिल हैं। यह सही है कि राज्याश्रय मे रहते हुऐ इन चित्रकारों का लिखित में कहीं उल्लेख नहीं है फिर भी विभिन्न साक्ष्यों से उनके नाम प्राप्त हो जाते हैं।
-डॉ. कनुप्रिया कुमावत
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