शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

शेखावाटी हवेलियों के चित्रों पर कंपनी शैली का प्रभाव


शेखावाटी हवेलियों के चित्रों पर ढूँढारी व कम्पनी चित्रकला का प्रभाव
यह लेख लेखिका डॉ. कनुप्रिया कुमावत के शोधपत्र कुमावत कलाकारों का योगदान व चेजारा चितेरों द्वारा शेखावाटी के हवेलियों के चित्र व चित्राकनों पर अंग्रेजों का प्रभाव से लिए गए कुछ अंश है। लेखिका ने यह शोधपत्र राजस्थान स्कूल आफ आर्ट की तरफ से कनोडिया कॉलेज में 
31 जनवरी से 3 फरवरी तक हुए सेमीनार में पढ़ा था।

 ढूँढारी चित्रकला का अनुकरण ठिकानों में भी हुआ है। ईसरदा, सिवाड़, झिलाय, चौमू, मालपुरा, सामोद में भी कलाकारों ने भित्ति चित्रण किये। इनका प्रभाव हमको शेखावाटी क्षेत्र के हवेलियों में भी स्पष्ट नजर आता है। यूं तो शेखावाटी अपने को जयपुर से स्वतंत्र मानकर चलता था, पर चित्राकन के विषय में वह जयपुर से बेहद प्रभावित नजर आता है। 1947 तक शेखावाटी जयपुर की रियासत का एक हिस्सा था । शेखावाटी में अधिकतर हवेलियों का निर्माण 19 वीं शताब्दी के मध्य ओर उत्तराद्र्ध में किया गया था।
शेखावाटी के चेजारा कुमावतों ने हवेलियों के निर्माण व चित्रकारी के काम की छाप ऐसी छोड़ी, जो आज भी देखने लायक है । शेखावाटी के अधिकांश भित्ति चित्र लगभग 125 से 150 वर्ष पूर्व के बने हैं। हवेलियों में अराइस की आलागीला पद्धती और दीवार की सूखी सतह पर भी चित्राकंन मिलते है। अराइस क ी गीली सतह के चित्रो में स्केच (कुराइ) तकनीक का सुन्दर प्रयोग किया है। अन्दर का हिस्सा आज भी सुरक्षित व सजीव है।
चित्रो के विषय में - रामायण , महाभारत, कृष्ण लीला, शिवपार्वती, ढोलामारू को लिया गया है। रगों में नीला (देशी नील), हरा (हरा पत्थर , सीलू), लाल (गेरू व सिंगरफ) जैसी प्राकृतिकरगों का प्रयोग किया गया है।   इन चित्रों का निर्माण 19 वीं शताब्दी के मध्य या उत्तराद्र्ध में होने के कारण इन पर यूरोपीय प्रभाव भी अधिक रहा है। शेखावाटी के सेठ कलकत्ता में रहकर यूरोपीय जीवन से भली भांती परिचित हो गये थे। इन्होने यहां अपनी हवेलियां बनाई और उन्हें चित्रों से सुसज्जित किया। जैसे लक्ष्मणगढ में झुन्झुनू वालों की हवेली, मुकुन्दगढ में नागलियो की हवेली, झुन्झुनू में टीबड़े वालों की हवेली, ईसरदास मोदी की हवेली, चूड़ी अजीतगढ में नेमाणियों की हवेली, चुरू में कोठारीयों की हवेली इसके अतिरिक्त - सीकर, नवलगढ, मण्डावा, फ तेहपुर, रामगढ, लक्षमणगढ, रानोली, वैध की ढाणी, सीकर, खाटूश्याम जी में भी कई हवेलियां है।
 शेखावाटी क्षेत्र में हमें धार्मिक चित्र, सामंती, श्रगांरिक चित्र, लोकजीवन पर चित्र और कंपनी शैली के समिश्रित चित्र देखने क ो मिलते हैं । सीकर मे मिले धार्मिक चित्रों में रामकृष्ण लिलाऐं, रामगढ की हवेली मे ब्रम्हा जी का चित्र जिसमे दाढी मूंछे हैं। सेठों की हवेली मे लोकजीवन, दरबारी चिंत्राकन , गांवों व कस्बो का चित्र, ऊॅ ट, हाथी, घोड़े, भाले, तीर-तलवार व शस्त्र तो कहीं झूला झूलती स्त्रीयां भी हैं।
इन हवेलियों में अंग्रेजों के प्रभाव का गहराई से अवलोकन करें तो सीकर के ठिकानेदार माधवसिंह ने 20 जून 1897 विक्टोरिया जुबली हॉल बनवाया। यहां के अभिलेख कहतें है कि विक्टोरिया के शासन के 60 साल पूरे होने के उपलक्ष्य मे यह हॉल बनवाया गया था। सेठ साहूकारों ने उदारतापूर्वक कलाकारों व चित्रकारों को आश्रय देकर कला को जीवित रखने व विकसित करने में अपना योगदान दिया।
शेखावाटी क्षेत्र में अधिकंाशत ढूँढारी और कंपनी दोनो ही शैली का चित्रण हुआ है।
यहां रेल का प्रचलन पहली  बार 1916 में हुआ। लेकिन 1865 व 1899 में बने दो भित्ति चित्रों में रेल का चिंत्राकन किया गया हैं। 1865में रामगढ में रामगोपाल पोदर की हवेली में काले रगं का ईंजन व लाल रंग के डब्बों को चित्रित किया गया। ड्राइवर व खलासी अंग्रेजी वेशभूषा मे हैं । सर पर टोप पहने हैं। पहिए बड़े आकार के, मुसाफि र अलग-अलग वेशभूषा में दिखलाए गयें है।

नीम का थाना में शिव नारायण प्रसाद पटवारी की हवेली में रेलगाड़ी का चित्र 1899 का हैं। रामगढ की पोद्दार की हवेली में इग्लण्ै ड की महारानी मैरी और जॉर्ज पचंम के आगमन के चित्र हंै। चार पहियों वाली व दो पहियों की गाडी़ के चित्र, 1890 में लक्षमणगढ के बद्रीदास वैद्य की हवेली के भित्ति चित्रो में अग्रेजी वेशभूषा पहने साईकिल सवार, 1890 में मंडावा में हवाई जहाज का चित्र, 1900 में नागरमल सेठ की नेमानी की हवेली मे कार के चित्र मिलते हैं।
 शेखावाटी के चितेरे
भित्ति चित्रण की इस समृद्धशाली परम्परा मे चित्रकारों का नाम और समाज में एक स्थान था। वे कोई गुमनाम चितेरे नहीं थे। इनमे नवलगढ के चितेरे- स्व. प्रताप जी बेडवाल, स्व.लादूराम जी बबेरवाल, स्व.मांगीलाल जी घोड़ेला। मण्डावा के चितेरे स्व.मुरलीधर जी तोंदवाल, स्व.हनुमान जी सिरसवा, फ तेहपुर व रामगढ के चितेरे स्व.राधेश्याम तूनवाल, स्व.आशाराम जी तूनवाल थे। इसके साथ रामलाल कुमावत, मूलचन्द कुमावत, गजानन्द तूनवाल इत्यादि चित्रकारों के नाम भी शामिल हैं। यह सही है कि राज्याश्रय मे रहते हुऐ इन चित्रकारों का लिखित में कहीं उल्लेख नहीं है फिर भी विभिन्न साक्ष्यों से उनके नाम प्राप्त हो जाते हैं।
                                            -डॉ. कनुप्रिया कुमावत
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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

Asian Art Show एशियन आर्ट शो


एशियन आर्ट शो में जयपुर के 
विद्यासागर उपाध्याय एवं विनय शर्मा 
के चित्र प्रदर्शित

दिल्ली के आईफैक्स कला दीर्घाओं में आरम्भ हुए एशियन
आर्ट शो में जयपुर के वरिष्ठ चित्रकार डॉ. विद्यासागर उपाध्याय एवं
विनय शर्मा की कृतियाँ दर्शको को आकर्षित कर रही है । दिनांक 17
फरवरी को कोरियन कल्चर सेन्टर, नई दिल्ली के निदेशक किम कुंम
प्योंग ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया ।

कोरिया की प्रसिद्ध कला पत्रिका “मैगजीन आर्ट “ द्वारा कोरियन कल्चर
सेन्टर के सहयोग से आयोजित इस प्रदर्शनी में कोरिया, भारत, चीन एवं
बंगला देश के कलाकार भाग ले रहे है । 100 कलाकारों के चित्रों
की प्रदर्शनी में भारत के 14 कलाकार, कोरिया के 80, बंगलादेश के
4 एवं चीन के दो कलाकारों को आंमत्रित किया गया है । यह प्रदर्शनी
दिसम्बर में साऊथ कोरिया के डे जोन शहर में होने वाले
इन्टरनेशनल आर्ट फेयर में लगाई जायेगी ।

डॉ. विद्यासागर उपाध्याय के एक्रेलिक माध्यम से बने कैनवास पर रंगांे
की सिम्फनी को रोचक तरीके से दर्शाया है । रंगों की फ्रीडम का
अहसास उनके चित्रों में देखने को मिलती है । प्रफुल्लित रंग मानो
कैनवस पर कोई राग सुना रहे हों ।
वहीं विनय शर्मा अपनी चिर परिचित शैली में भाषा की दरखत
कैनवास पर उतार समृद्ध भारतीय साहित्य की बानगी कैनवास पर दर्शाई है ।
पुराने हस्तलिखित खतों को कैनवस पर हल्के गहरे रंगांे से उकेर गुजरे
समय की स्मृतिों को दर्शाया है ।
विनय शर्मा के चित्र कोरिया में प्रदर्शित
दिनांक 18 फरवरी से 27 फरवरी तक इण्डियन कल्चर सेन्टर सियोल -
साऊथ कोरिया में जयपुर के विनय शर्मा के चित्र प्रदर्शित किये जा रहे है ।
इस प्रदर्शनी में कुल बीस कलाकारों की कृतियाँ दिखाई जा रही है
इनमें 9 भारतीय एवं 11 कोरियन कलाकार है ।

कोरिया इण्डिया कन्टम्परेरी आर्टिस्ट एसोसियेशन के सहयोग से आयोजित इस प्रदर्शनी मंे विनय शर्मा ने विशेष रूप से तैयार किये हैण्डमेड पेपर पर पुराने हस्तलिखित हैण्डमेड को पारदर्शिता से दिखाया है । विनय अपने पेपर का निर्णय स्वयं करते है एवं परत-दर-परत उसमंे पारदर्शिता दिखाते हैं । एैसा प्रतीत होता है मानो अक्षर झरोखों से देख रहे हो । पुरानी भारतीय जीवन पद्धति के साक्षी बनते विनय शर्मा के चित्र दर्शकों को अपनी और आकर्षित करते है । ऐसा प्रतीत होता है मानो गुजरे समय को वे अपने चित्रों में समेटना चाहते हों ।

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

राजस्थान स्कूल आफ आर्ट की राष्ट्रीय कला कार्यशाला शुरू


कृतिकार और दर्शक को मैं से हम होना होगा -सालोदिया
मूमल नेटवर्क, जयपुर। कलाकार और उसकी कृति का दर्शक 'मैं' से निकल कर 'हम' हो जाए और फिर हम मिलकर अपने अनुभव साझा करें तब ही कलाकृतियों का सृजन, प्रदर्शन व दर्शन सार्थक हो सकता होगा। यह लब्बोलुआब उस उद्बोधन का है जो आज प्रदेश के सबसे पुराने कला शिक्षा संस्थान राजस्थान स्कूल आफ आर्ट द्वारा आयोजित तीसरी राष्ट्रीय कला कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी व जवाहर कला केन्द्र के महानिदेशक उमराव सालोदिया ने व्यक्त किए।
राष्ट्रीय कला कार्यशाला के मुख्य अतिथि के रूप में उमराव सालोदिया ने कहा कि किसी कलाकृति के पीछे की भावना सिर्फ  एक कलाकार ही बेहतर व्यक्त सकता है, लेकिन आम दर्शक भी उससे जुड़कर उसे देख और समझ सके, ऐसा तभी सम्भव है जब वह 'मैं' से निकल कर 'हम' हो जाए और फिर हम आपस में अपने-अपने अनुभव साझा करें व कलाकृतियों का सृजन व प्रदर्शन सार्थक करें।
कॉजेल परिसर में चल रही राष्ट्रीय कला कार्यशाला का आयोजन 6 फरवरी तक होगा। इसमें देशभर के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की ललित कला संकाय के चित्रकला एवं व्यावहारिक कला विभाग में अध्ययनरत कुल 50 विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। कार्यशाला का संचालन वरिष्ठ कलाकार व कॉलेज के एप्लाइड आर्ट विभाग के प्रमुख सुनीत घिल्डियाल द्वारा किया जा रहा है।
घिल्डियाल ने 'मूमल' को बताया कि इस कार्यशाला का मूल उद्देश्य देश भर से आये विभिन्न ललित कला महाविद्यालयों एवं राजस्थान के विद्यार्थियों के मध्य वैचारिक तथा कला एवं संस्कृति का आदान - प्रदान करना भी है। कार्यशाला में विद्यार्थी विभिन्न विधाओं में कार्य करेंगे। इस कार्यशाला में बड़़ोदा, दिल्ली, लखनऊ, बनारस,  चंडीगढ़ जैसे 11 प्रतिष्ठित महाविद्यालयों से विद्यार्थी भाग ले रहे हैं।
इस कार्यशाला के लिए राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट, जयपुर के विद्यार्थियों ने महाविद्यालय परिसर के मध्य में एक विशाल हैंगिंग इंस्टालेशन (संस्थापन) किया है जो बहुत ही सुन्दर व दर्शनीय है , जिसका निर्देशन जयन्तश्री द्वारा किया गया है।
इससे पूर्व राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट की प्राचार्या डॉ. वंदना चक्रवर्ती ने मुख्य अतिथि उमराव सालोदिया का स्वागत कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। तत्पश्चात कला इतिहास विभाग क प्रमुख हरिशंकर ने कार्यक्रम का विवरण दिया।
अंत में कार्यशाल कन्वीनर सुनीत घिल्डियाल ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि के संबोधन से सहमति व्यक्त की और कहा कि हमेशा संवाद ही नए आयामों को जन्म देता है। उन्होंने बताया कि यह कार्यशाला बहुत यादगार होगी, क्योंकि इस ऐतिहासिक इमारत में इस कला महाविद्यालय की सम्भवत: यह अंतिम कार्यशाला है। इसके बाद कॉलेज शिक्षा संकुल स्थित नए भवन में स्थानान्तरित हो जाएगा।