दिल्ली में अगले महीने आईफैक्स में आयोजन
मूमल नेटवर्क, नई दिल्ली। राजधानी की आईफैक्स आर्ट गैलेरी में नवम्बर माह में देश भरके अनुभवी चित्रकारों के साथ युवा कूची के तेवर भी देखने को मिलेंगे।'पेन्ट फार जस्टिस' के नाम से होने वाले इस प्रदर्शन में मुख्यतया दो विचारों का दर्शन समेटने का प्रयास होगा। पहला ये कि कलाकार उन विषयों को अपनी कृतियों में उकेरे जिन से आम व्यक्ति मानसिक रूप से घायल हुआ है। दूसरा विचार यह है कि इस आयोजन के जरिए उन कलाकारों को मुख्य सामाजिक धारा में जोड़ा जाए जो अभी खुद में ही खोए हुए हैं।
इस आयोजन के लिए बड़े पैमाने पर व्यवसायिक व्यवस्थाएं की गई हैं, इसमें भाग लेने के लिए प्रत्येक कलाकार से 1100 रुपए शुल्क लिया गया है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए पेशेवर लोगों की सेवाएं ली गई हैं, यह बात अलग है कि देशभर में वरिष्ठ कलाकारों के विभिन्न गुटों ने इस आयोजन को दरकिनार किया है।
इस आयोजन में प्रत्येक राज्य से ग्यारह-ग्यारह कलाकारों के दल भाग लेंगे। इन कलाकारों के दल मेंं एक सीनियर आर्टिस्ट उनका कन्वीनर होगा। राजस्थान से जाने-माने चित्रकार और कला शिक्षक डा. अनुपम भटनागर के प्रतिनिधित्व में जो दल इस प्रदर्शन में भाग लेगा उसमें जयपुर से रमेश शर्मा, जोधपुर से प्रदिप्तों दास, अजमेर से रूपाली माथुर, कोटा से डा. सुरेश प्रजापति, कुचामन सिटी से गिरीश, भीलवाड़ा से अनिल मोहनपुरिया, एस.एन. सोनी, निशा कानावत व सौरव भट्ट, उदयपुर से डा. मोहनलाल जाट, व बांसवाड़ा से स्वयं डा. अनुपम भटनागर शामिल हैं।
पेंन्ट फार जस्टिस के लिए राजस्थान से डा. अनुपम भटनागर की नई कृति 'ओह! मेरा बचपन' इसे केनवास पर एक्रेलिक रंगों से सजाया गया है। इसका आकार है 24 गुणा 30 इंच। कृति पर कलाकार ने कविता भी लिखी है। |
ओह! मेरा बचपन
कोई है?
जो दिलाए मुक्ति;
बैग के बोझ से
और
लौटा दे मेरा बचपन
ए बी सी और वन टू थ्री ने
खो दिया जिसे...
बैग, बोतल, टिफिन का
कंधे तोड़ता बोझ
सभी ने किया बदरंग
बचपन का रंग...
नानी की कहानियां
आइस-पाइस, छुप्पा-छुप्पी
लंगड़ी-टांग, पकड़म-पकड़ाई
सब... वो-मारा वो-काटा
मेरी गुडिय़ा
उसकी शादी
खेल मेरे बचपन के
बस रस्में निभाई...
सबका गौना सबकी विदाई
फिर एक दिन दब गया
बैग तले बचपन
ओह! मेरा बचपन
झूल रहा है बैग में...
कोई है?
जो दिलाए मुक्ति;
बैग के बोझ से
और
लौटा दे मेरा बचपन
ए बी सी और वन टू थ्री ने
खो दिया जिसे...
बैग, बोतल, टिफिन का
कंधे तोड़ता बोझ
सभी ने किया बदरंग
बचपन का रंग...
नानी की कहानियां
आइस-पाइस, छुप्पा-छुप्पी
लंगड़ी-टांग, पकड़म-पकड़ाई
सब... वो-मारा वो-काटा
मेरी गुडिय़ा
उसकी शादी
खेल मेरे बचपन के
बस रस्में निभाई...
सबका गौना सबकी विदाई
फिर एक दिन दब गया
बैग तले बचपन
ओह! मेरा बचपन
झूल रहा है बैग में...
डा अनुपम भटनागर द्वारा अपनी कृति पर लिखी पहली कविता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें