आर्ट फंड में पैसा लगाने से कई जोखिम जुड़े हुए हैं। जब तक आप इस एसेट क्लास को बखूबी नहीं समझ लेते तब तक इसमें निवेश करने से बचना चाहिए। दिल्ली से मूमल के शुभ चिंतक संजीव सिन्हा ने आर्ट फंड में निवेश से जुड़े फायदे और नुकसान की जानकारी दी हैं...
कई निवेशक आर्ट फंड में पैसा गंवा चुके हैं। हालांकि जब उन्होंने इसमें निवेश किया था, तब उन्हें बेहतर रिटर्न का वादा किया गया था। कुछ साल पहले भारतीय निवेशकों की आर्ट फंड में दिलचस्पी बढऩी शुरू हुई। तब आर्ट मार्केट भी तेजी के घोड़े पर सवार था। जिस एसेट क्लास में भी तेजी आती है, वहां सट्टेबाज भी पहुंचते हैं। आर्ट फंड के साथ भी ऐसा ही हुआ। तब आर्ट में निवेश करने वालों को अच्छा रिटर्न मिल रहा था।
हिंदुस्तानी पेंटिंग्स के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची बोली लगाई जा रही थी। समसामयिक भारतीय आर्ट को विदेशी खरीदार हाथों-हाथ ले रहे थे। कई लोगों को यह बेहद सुरक्षित निवेश लगा और उन्होंने इसमें पैसा लगाना शुरू कर दिया। कुछ समय तक आर्ट बाजार में तेजी बरकरार रही। अमीर लोग ऊंची कीमत पर आर्ट खरीद रहे थे। हालांकि कुछ साल में हालात बिल्कुल बदल गए हैं। अब आर्ट मार्केट पहले जैसा नहीं रह गया है। ओसियान आर्ट फंड और फर्नवुड आर्ट इनवेस्टमेंट नाकाम रहे। आर्ट इनवेस्टमेंट अब बुरे वक्त से गुजर रहा है।
आज उसका कुछ साल पहले वाला जलवा नहीं है। ऐसे में आर्ट और आर्ट इनवेस्टमेंट में निवेश को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यहां एक सवाल निवेशकों को पूछने की जरूरत है? क्या आर्ट इनवेस्टमेंट आज के हालात में उनके लिए ठीक होगा?
क्या है आर्ट फंड
इससे पहले कि आप किसी नतीजे पर पहुंचें, आइए पहले आर्ट फंड को समझते हैं। आर्ट फंड को लेकर रेग्युलेटर की ओर से साफ गाइडलाइंस नहीं हैं। साथ ही इसके लिए स्पष्ट नियम भी नहीं हैं। दरअसल, कुछ निवेशक जब एक साथ ट्रस्ट बनाते हैं और आर्ट में निवेश के लिए फंड जमा करते हैं तो उसे आर्ट फंड कहा जाता है। आर्ट फंड काफी हद तक प्राइवेट इक्विटी की तरह होता है। या इसे म्यूचुअल फंड भी कह सकते हैं जो आर्ट में निवेश करता है।
क्या करता है आर्ट फंड
आर्ट फंड पेंटिंग्स का एक कलेक्शन तैयार करता है, जिसमें बड़े निवेशक पैसा लगा सकते हैं। एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के सीईओ और मैनेजिंग पार्टनर राजेश सलूजा का कहना है, 'आर्ट फंड का मकसद निवेशकों को एक अलग एसेट क्लास में पैसा लगाने का विकल्प मुहैया कराना है। इस एसेट क्लास का इक्विटी और डेट प्रोडक्ट्स से कोई लेना-देना नहीं होता। इसमें प्रफेशनल मैनेजरों के रिसर्च की मदद से निवेशकों को आर्ट पूल में पैसा लगाने की सुविधा मिलती है।Ó
तीस प्रतिशत का दावा
निवेशकों की चाहत यह होती है कि आर्ट फंड उन्हें महंगाई से ज्यादा रिटर्न मुहैया कराए। आर्ट फंड इक्विटी या डेट प्रोडक्ट से जुड़ा नहीं होता। ऐसे में माना जाता है कि उनके प्रदर्शन से आर्ट फंड के प्रदर्शन पर असर नहीं पड़ेगा। दुनिया भर में बहुत कम आर्ट फंड हैं, जिनका नियंत्रण सरकारी इकाई मसलन ब्रिटिश रेल पेंशन फंड या चेज मैनहट्टन बैंक जैसे फाइनैंशल इंस्टीट्यूशन के हाथ में रहा है। इनमें से कुछ फंड 30 फीसदी तक के रिटर्न का दावा करते हैं। हालांकि इनका ट्रैक रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है। आर्ट फंड का रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि फंड के पूल के आर्ट की कितनी डिमांड है। अगर किसी आटिस्र्ट की पेंटिंग्स की डिमांड ज्यादा है और फंड ने उसे कम कीमत पर खरीदा है तो उसे बेचने पर अच्छा रिटर्न हासिल हो सकता है।
नेगेटिव रिटर्न भी
सलूजा का कहना है, 'आर्ट को बेचना इक्विटी या डेट प्रॉडक्ट की तरह आसान नहीं होता। 70 के दशक में जो आर्ट फंड शुरू हुए थे, उनमें से कइयों ने हाल तक महंगाई दर से कम रिटर्न दिया था। कुछ ने तो नेगेटिव रिटर्न भी दिया है। आर्ट फंड में निवेश का मकसद ज्यादा रिटर्न हासिल करना रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इक्विटी से आर्ट फंड के रिटर्न का कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे में आर्ट फंड में निवेश से पोर्टफोलियो डायवसिर्फाई करने में मदद मिलती है।Ó
रियल एस्टेट निवेश जैसा
हालांकि इसके साथ समस्या यह है कि मुश्किल घड़ी में इस तरह के एसेट क्लास जिनका इक्विटी या डेट से कोई लिंक नहीं होता, उनमें भी बदलाव देखा जा सकता है। मिसाल के तौर पर 2008 के वित्तीय संकट के दौरान आर्ट फंड के साथ भी ऐसा ही हुआ। आर्ट इनवेस्टमेंट के साथ सबसे बुरी बात यह है कि इसे आसानी से बेचा नहीं जा सकता। इसका मतलब यह है कि जब इस बाजार में भारी गिरावट आ रही हो तो आप ब्रोकर को फोन करके तत्काल बिकवाली नहीं कर सकते हैं। जानकारों का कहना है कि आर्ट काफी हद तक रियल एस्टेट निवेश की तरह है। जो आर्ट फंड इस बाजार की तेजी के दौरान लॉन्च किए गए थे, उनमें कई बार गिरावट देखी जा चुकी है।
नया कॉन्सेप्ट है
इसके साथ ही रेग्युलेटरी गाइडलाइंस का न होना भी आर्ट इनवेस्टमेंट की राह में सबसे बड़ी बाधा है। आर्ट इनवेस्टमेंट का कॉन्सेप्ट अभी भी शुरुआती अवस्था में है। हालांकि सेबी ने अब तक इनके रेग्युलेशन के लिए गाइडलाइंस नहीं बनाए हैं। इसका मतलब यह है कि जो लोग इसमें पैसा लगा रहे हैं, उन्हें रेग्युलेटर की ओर से कोई सुरक्षा नहीं मिल रही है। इसके अलावा आर्ट फंड में रिस्क काफी ज्यादा होता है। इसमें प्राइस डिस्कवरी का कोई कारगर तरीका नहीं होता।
वैल्यूएशन बेहद मुश्किल
ऐसे में वैल्यूएशन का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में आर्ट फंड में निवेश काफी हद तक इसके पूल में मौजूद आर्ट के बिकने और होल्डिंग की कीमत में बढ़ोतरी पर निर्भर करता है। सलूजा के मुताबिक, 'आर्ट इनवेस्टमेंट में मॉनिटरिंग सिस्टम का अभाव है। साथ ही इसमें रेग्युलेटरी नियंत्रण भी नहीं है। इस वजह से अभी निवेशक इसे लेकर एहतियात बरत रहे हैं।Ó
विशेष योग्यता की मांग
इसके साथ ही निवेश के लिए किसी आर्ट का चुनाव भी विशेष योग्यता की मांग करता है। जो लोग आर्ट में काफी समय से निवेश कर रहे हैं, उन्हें यह पता है कि किसी जाने-माने आर्टिस्ट की सभी पेंटिंग्स की ऊंची कीमत नहीं मिलती है। आर्ट फंड ने जिन कलाकृतियों में निवेश किया है, उनकी जांच से पता चलता है कि इसमें से 30-40 फीसदी की कीमत में ज्यादा बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है।
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कई निवेशक आर्ट फंड में पैसा गंवा चुके हैं। हालांकि जब उन्होंने इसमें निवेश किया था, तब उन्हें बेहतर रिटर्न का वादा किया गया था। कुछ साल पहले भारतीय निवेशकों की आर्ट फंड में दिलचस्पी बढऩी शुरू हुई। तब आर्ट मार्केट भी तेजी के घोड़े पर सवार था। जिस एसेट क्लास में भी तेजी आती है, वहां सट्टेबाज भी पहुंचते हैं। आर्ट फंड के साथ भी ऐसा ही हुआ। तब आर्ट में निवेश करने वालों को अच्छा रिटर्न मिल रहा था।
हिंदुस्तानी पेंटिंग्स के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची बोली लगाई जा रही थी। समसामयिक भारतीय आर्ट को विदेशी खरीदार हाथों-हाथ ले रहे थे। कई लोगों को यह बेहद सुरक्षित निवेश लगा और उन्होंने इसमें पैसा लगाना शुरू कर दिया। कुछ समय तक आर्ट बाजार में तेजी बरकरार रही। अमीर लोग ऊंची कीमत पर आर्ट खरीद रहे थे। हालांकि कुछ साल में हालात बिल्कुल बदल गए हैं। अब आर्ट मार्केट पहले जैसा नहीं रह गया है। ओसियान आर्ट फंड और फर्नवुड आर्ट इनवेस्टमेंट नाकाम रहे। आर्ट इनवेस्टमेंट अब बुरे वक्त से गुजर रहा है।
आज उसका कुछ साल पहले वाला जलवा नहीं है। ऐसे में आर्ट और आर्ट इनवेस्टमेंट में निवेश को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यहां एक सवाल निवेशकों को पूछने की जरूरत है? क्या आर्ट इनवेस्टमेंट आज के हालात में उनके लिए ठीक होगा?
क्या है आर्ट फंड
इससे पहले कि आप किसी नतीजे पर पहुंचें, आइए पहले आर्ट फंड को समझते हैं। आर्ट फंड को लेकर रेग्युलेटर की ओर से साफ गाइडलाइंस नहीं हैं। साथ ही इसके लिए स्पष्ट नियम भी नहीं हैं। दरअसल, कुछ निवेशक जब एक साथ ट्रस्ट बनाते हैं और आर्ट में निवेश के लिए फंड जमा करते हैं तो उसे आर्ट फंड कहा जाता है। आर्ट फंड काफी हद तक प्राइवेट इक्विटी की तरह होता है। या इसे म्यूचुअल फंड भी कह सकते हैं जो आर्ट में निवेश करता है।
क्या करता है आर्ट फंड
आर्ट फंड पेंटिंग्स का एक कलेक्शन तैयार करता है, जिसमें बड़े निवेशक पैसा लगा सकते हैं। एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के सीईओ और मैनेजिंग पार्टनर राजेश सलूजा का कहना है, 'आर्ट फंड का मकसद निवेशकों को एक अलग एसेट क्लास में पैसा लगाने का विकल्प मुहैया कराना है। इस एसेट क्लास का इक्विटी और डेट प्रोडक्ट्स से कोई लेना-देना नहीं होता। इसमें प्रफेशनल मैनेजरों के रिसर्च की मदद से निवेशकों को आर्ट पूल में पैसा लगाने की सुविधा मिलती है।Ó
तीस प्रतिशत का दावा
निवेशकों की चाहत यह होती है कि आर्ट फंड उन्हें महंगाई से ज्यादा रिटर्न मुहैया कराए। आर्ट फंड इक्विटी या डेट प्रोडक्ट से जुड़ा नहीं होता। ऐसे में माना जाता है कि उनके प्रदर्शन से आर्ट फंड के प्रदर्शन पर असर नहीं पड़ेगा। दुनिया भर में बहुत कम आर्ट फंड हैं, जिनका नियंत्रण सरकारी इकाई मसलन ब्रिटिश रेल पेंशन फंड या चेज मैनहट्टन बैंक जैसे फाइनैंशल इंस्टीट्यूशन के हाथ में रहा है। इनमें से कुछ फंड 30 फीसदी तक के रिटर्न का दावा करते हैं। हालांकि इनका ट्रैक रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है। आर्ट फंड का रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि फंड के पूल के आर्ट की कितनी डिमांड है। अगर किसी आटिस्र्ट की पेंटिंग्स की डिमांड ज्यादा है और फंड ने उसे कम कीमत पर खरीदा है तो उसे बेचने पर अच्छा रिटर्न हासिल हो सकता है।
नेगेटिव रिटर्न भी
सलूजा का कहना है, 'आर्ट को बेचना इक्विटी या डेट प्रॉडक्ट की तरह आसान नहीं होता। 70 के दशक में जो आर्ट फंड शुरू हुए थे, उनमें से कइयों ने हाल तक महंगाई दर से कम रिटर्न दिया था। कुछ ने तो नेगेटिव रिटर्न भी दिया है। आर्ट फंड में निवेश का मकसद ज्यादा रिटर्न हासिल करना रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इक्विटी से आर्ट फंड के रिटर्न का कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे में आर्ट फंड में निवेश से पोर्टफोलियो डायवसिर्फाई करने में मदद मिलती है।Ó
रियल एस्टेट निवेश जैसा
हालांकि इसके साथ समस्या यह है कि मुश्किल घड़ी में इस तरह के एसेट क्लास जिनका इक्विटी या डेट से कोई लिंक नहीं होता, उनमें भी बदलाव देखा जा सकता है। मिसाल के तौर पर 2008 के वित्तीय संकट के दौरान आर्ट फंड के साथ भी ऐसा ही हुआ। आर्ट इनवेस्टमेंट के साथ सबसे बुरी बात यह है कि इसे आसानी से बेचा नहीं जा सकता। इसका मतलब यह है कि जब इस बाजार में भारी गिरावट आ रही हो तो आप ब्रोकर को फोन करके तत्काल बिकवाली नहीं कर सकते हैं। जानकारों का कहना है कि आर्ट काफी हद तक रियल एस्टेट निवेश की तरह है। जो आर्ट फंड इस बाजार की तेजी के दौरान लॉन्च किए गए थे, उनमें कई बार गिरावट देखी जा चुकी है।
नया कॉन्सेप्ट है
इसके साथ ही रेग्युलेटरी गाइडलाइंस का न होना भी आर्ट इनवेस्टमेंट की राह में सबसे बड़ी बाधा है। आर्ट इनवेस्टमेंट का कॉन्सेप्ट अभी भी शुरुआती अवस्था में है। हालांकि सेबी ने अब तक इनके रेग्युलेशन के लिए गाइडलाइंस नहीं बनाए हैं। इसका मतलब यह है कि जो लोग इसमें पैसा लगा रहे हैं, उन्हें रेग्युलेटर की ओर से कोई सुरक्षा नहीं मिल रही है। इसके अलावा आर्ट फंड में रिस्क काफी ज्यादा होता है। इसमें प्राइस डिस्कवरी का कोई कारगर तरीका नहीं होता।
वैल्यूएशन बेहद मुश्किल
ऐसे में वैल्यूएशन का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में आर्ट फंड में निवेश काफी हद तक इसके पूल में मौजूद आर्ट के बिकने और होल्डिंग की कीमत में बढ़ोतरी पर निर्भर करता है। सलूजा के मुताबिक, 'आर्ट इनवेस्टमेंट में मॉनिटरिंग सिस्टम का अभाव है। साथ ही इसमें रेग्युलेटरी नियंत्रण भी नहीं है। इस वजह से अभी निवेशक इसे लेकर एहतियात बरत रहे हैं।Ó
विशेष योग्यता की मांग
इसके साथ ही निवेश के लिए किसी आर्ट का चुनाव भी विशेष योग्यता की मांग करता है। जो लोग आर्ट में काफी समय से निवेश कर रहे हैं, उन्हें यह पता है कि किसी जाने-माने आर्टिस्ट की सभी पेंटिंग्स की ऊंची कीमत नहीं मिलती है। आर्ट फंड ने जिन कलाकृतियों में निवेश किया है, उनकी जांच से पता चलता है कि इसमें से 30-40 फीसदी की कीमत में ज्यादा बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है।
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