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गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

कला सत्य की अनुकृति -जैसवाल


छात्राओं ने दिया प्रतिभा का परिचय 
मूमल नेटवर्क, अजमेर।
आकार ग्रुप के जाने-माने आर्टिस्ट डॉ. अमित राजवंशी के संयोजन में राजकीय कन्या महाविद्यालय की छात्राओं की दो दिवसीय चित्रकला प्रदर्शनी का शुभारंभ 12 दिसम्बर को किया गया। सूचना केन्द्र की कला दीर्घा में आरम्भ हुई इस प्रदर्शनी का उद्घाटन कलाविद् राम जैसवाल ने किया। इस अवसर पर समकालीन चित्रकार प्रहलाद शर्मा भी उपस्थित थे।
जैसवाल ने छात्राओं की कलाकृतियों की प्रशंसा कर उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कला सत्य की अनुकृति है। इसके माध्यम से समाज को जोड़ा जा सकता है। संयोजक राजवंशी ने बताया कि यह पहला अवसर है, जब महाविद्यालय की छात्राओं की चित्र प्रदर्शनी आम लोगों के लिए आयोजित की जा रही है। चित्रकार प्रह्लाद शर्मा ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रदर्शनी के माध्यम से लोग छात्राओं की कला प्रतिभा से रूबरू हो सकेंगे। इससे कलात्मक वातावरण भी बनेगा।
 कार्यक्रम अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. मीरा चंदावत ने कहा कि छात्राओं ने अपनी कला प्रतिभा का परिचय दिया है। इस अवसर पर उपाचार्य आरएस अग्रवाल भी मौजूद थे। प्रदर्शनी में 50 विद्यार्थियों की 300 चित्रकृतियां प्रदर्शित की गई । 

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

जयपुर कला मेला पर निवेशकों कि पेनी नजर

मूमल नेटवर्क, जयपुर। अंतत: राजस्थान कला अकादमी ने भी कला बाजार की अहमियत को माना और कला मेले में प्रदर्शन के लिए लगाई जाने वाली कृतियों के लिए मेला स्थल के बाहर भी बायर उपलब्ध कराने को अपने स्तर पर योजना बनाई।
इससे पूर्व मेला प्रांगण में आने वाले कला प्रेमियों पर ही कलाकृतियों की खरीद निर्भर करती थी। प्रदेश में अपनी बेहतर प्रतिष्ठा बना चुके अकादमी के कला मेले पर पिछले कुछ वर्षों से कला प्रेमियों के साथ कला व्यवसायियों और इस क्षेत्र में पूंजी निवेश करने वालों का ध्यान भी केंद्रित होने लगा है। क्यों कि कला मेले में किसी भी कला दीर्घा से अधिक काम की व्यापक रैंज उपलब्ध होती है। यहां सामान्य बायर और निवेशक को अपने स्तर पर कलाकृति की कीमत का आंकलन करने के अवसर अधिक मिलते हैं। साथ ही कला का खुला आकाश होने के कारण फॉल्स बायर से मिलकर कॉस्ट फिक्सिंग कराने वालों की दाल नहीं गलती। कला मेले का सबसे प्रभावी पक्ष यह माना जा सकता है कि प्रदेश भर के कलाकार यहां आकर अन्य कलाकारों के समकालीन काम को देखते हैं और उन्हें कला जगत में अपनी वास्तविक स्थिति का भान होता है।
एक मुश्त में रुचि नहीं
प्रदेश में पिछले कुछ अर्से में हुई कला गतिविधियों के बाद यह तस्वीर साफ होने लगी है कि आर्ट बायर और इनवेस्टर दोनों ही अब बड़े कलाकारों की मंहगी कृलाकृतियों पर एक मुश्त पैसा लगाने के बजाय उभरते कलाकारों के बेहतर काम पर छोटे-छोटे निवेश करने लगे हैं। इसमें लागत और जोखिम तो कम होती ही है, कलाकार की हाईट अचानक बढ़ जाए तो निवेश किया हुआ धन कई गुना बढऩे के अवसर बनते हं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कुछ सालों पहले शकील सिद्दकी के काम पर एक दैनिक अखबार के युवा निदेशक द्वारा किया हुआ निवेश है, जो अब कई गुना हो चुका है। इसी प्रकार एक कार्पेट व्यवसायी आर्ट कलेक्टर द्वारा चन्द्र प्रकाश सैन के काम पर किया जा रहा निवेश चर्चा में है। जयपुर की शीतल चितलांगिया, भीलवाड़ा के अनिल मोहनपुरिया व सौरभ भट्ट तथा उदयपुर के मोहनलाल जाट व गौरव शर्मा के काम पर भी निवेशकों की नजर है।
वरिष्ठ कलाकार करेंगे मूल्य आंकलन
कलाकृतियों का मूल्य निर्धारित करने के लिए इस बार वरिष्ठ कलाकारों की मदद ली जाएगी। हालांकि प्रदेश में अभी तक कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष आर्ट वैल्युवर नहीं है, लेकिन वरिष्ठ कलाकारों की मदद से नवोदित कलाकारों को अपने काम की कीमत का सही अंदाज तो होगा। यह आशा भी की जा रही है कि अकादमी के इस प्रयास से कलाकारों में 'मिथ्या मूल्य निर्धारण' की प्रवृति कुछ कम होगी। राहुल सेन

रविवार, 22 जनवरी 2012

छोटे शहरों में बन रही है कला बाजार की नई टेरेटरी

जयपुर के कई आर्ट कलेक्टर बताते हैं कि उनके पास दिल्ली, हैदराबाद, सूरत, भोपाल, लखनऊ और गया जैसे शहरों से लोगों के फोन आते हैं। वे यहां के आर्ट और आर्टिस्टों के बारे में जानना चाहते हैं। वे यहां के कलेक्शंस को खरीदने में रुचि दिखाते हैं। उनके पास पैसा तो है लेकिन यहां के आर्ट और आर्टिस्टों तक पहुंच नहीं है।
वैसे तो भारतीय कला बाजार को मॉनिटर करने का कोई ठोस तंत्र विकसित नहीं हो पाया है, फिर भी एक्सपट्र्स की मानें, तो यह लगभग एक हजार करोड़ से सोलह सौ करोड़ के बीच होगा। पिछले दस सालों में उसमें तेजी से इजाफा हुआ है। हमारी कला के कद्रदान और खरीदार बढ़ रहे हैं। पर कुल मिलाकर इसका बाजार बहुत असंतुलित है। यह अभी तक दो बड़े शहरों तक सिमटा हुआ है- दिल्ली और मुंबई। या फिर विदेशों में। इसके अलावा इसका कलेक्टर बेस भी बहुत छोटा है। लेकिन 500 से भी कम कलेक्टरों के साथ इस बाजार में अभी बहुत संभावनाएं हैं। यहां चीन का उल्लेख करना जरूरी है। चीन का कला बाजार भारत के मुकाबले 40 गुना बड़ा है। चीन की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुंच बनाने के लिए कई दूसरे तरीके तलाशने की जरूरत है।


कारोबारी गतिविधियां बढ़ी: अधिकतर कला विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय कला बाजार का भविष्य बड़े शहरों पर निर्भर नहीं करता। अब वक्त आ गया है जब उसे अपने लिए नई टेरिटरी तलाशनी होगी। यह टेरिटरी उसे छोटे शहरों के रूप में मिल सकती है। सच तो यह है कि पिछले कुछ समय में देश के छोटे शहरों का बहुत तेजी से विकास हुआ है। जयपुर तक को अभी कला बाजार के छोटे शहरों में ही गिना जा रहा है। हालांकि यहां कारोबारी गतिविधियां बढ़ी हैं, जिससे समृद्धि आई है। जैसे-जैसे छोटे शहरों में पैसा आएगा, वैसे-वैसे वहां कला के कद्रदान बढ़ेंगे। राजस्थान में जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा और भीलवाड़ा के कलाकारों ने देश के आर्ट कलेक्टरों में स्थान बनाना शुरू किया है। जयपुर के कई आर्ट कलेक्टर बताते हैं कि उनके पास दिल्ली, हैदराबाद, सूरत, भोपाल, लखनऊ और गया जैसे शहरों से लोगों के फोन आते हैं। वे यहां के आर्ट और आर्टिस्टों के बारे में जानना चाहते हैं। वे यहां के कलेक्शंस को खरीदने में रुचि दिखाते हैं। उनके पास पैसा तो है लेकिन यहां के आर्ट और आर्टिस्टों तक पहुंच नहीं है। ऐसे लोगों को आर्ट पीसेज उपलब्ध हों, इसके लिए उन्हें राजस्थान में कुछ खास आर्टिस्टों के काम तक सिमटी कला दीर्घाओं से बेहतर किसी तटस्थ प्लेटफार्म की जरूरत है।
विदेशों में भी भारतीय कला के कद्रदानों की कोई कमी नहीं है। कला बाजार को उनकी भी बहुत जरूरत है। पिछले साल एक नीलामी के दौरान एक अमेरिकी ने हुसैन की पेंटिंग को 10 लाख डॉलर से भी अधिक कीमत में खरीदा था। हांगकांग में हुई नीलामी में भी चीनी और इंडोनेशियाई खरीदारों ने भारतीय कला में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। यह भारतीय कला बाजार के लिए अच्छा संकेत है। वैसे भारतीय कला के चार स्तंभों की मांग अब भी सबसे ज्यादा है। जिस किसी के भी पास पैसा है वह हुसैन, रजा, सूजा या मेहता के कैनवास को अपने कलेक्शन में शामिल करना चाहता है। मंदी के दिनों में भी उनकी लोकप्रियता या कीमत में कोई कमी नहीं आई थी। इन चार स्तंभों के अलावा जामिनी रॉय, टैगोर, वीएस गायतोंडे, अकबर पदमसी और रामकुमार जैसे कलाकारों की भी मांग है। पिछले महीने लंदन के एक एनालिस्ट ने भारतीय कला बाजार की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें उसने कहा कि बाजार विशेषज्ञ आधुनिक भारतीय कला को लेकर बहुत पॉजिटिव हैं। इसके बावजूद कि अप्रैल 2011 से भारतीय कला बाजार के कॉन्फिडेंस इंडिकेटर में 28 परसेंट की गिरावट हुई थी। बहरहाल विदेश का बाजार तो अपनी जगह है ही, अपने देसी बाजार को भी और मजबूत करने की जरूरत है। अगर वे बाजार जम गए तो देश के उभरते कलाकारों को भी काफी लाभ होगा।
मशहूर भारतीय पेंटर सैय्यद हैदर रजा के पिछले साल भारत लौटने बाद भी उनके काम के दाम स्थिर हैं। रजा भारतीय कला की उस मशहूर चौकड़ी की आखिरी कड़ी हैं, जो कला के बाजार पर राज करती रही है। इनमें से तीन एम।एफ. हुसैन, सूजा और तैय्यब मेहता अब इस दुनिया में नहीं हैं। इसके बावजूद भारतीय कला बाजार में इस चौकड़ी की हिस्सेदारी आधी से ज्यादा है करीब 50 से 60 परसेंट तक। -राहुल सेन

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

अनूपम भटनागर का कला जगत

'मूमल' के कला ब्लॉग "गलियारा" से जुड़े डा। अनूपम भटनागर मूल रूप से नजाकत की नगरी लखनऊ से हैं। इनका जन्म 4 फरवरी 1955 में उत्तरप्रदेश के हापुड़ शहर में हुआ। बहुत छोटी आयु में पिता के देहान्त के बाद ताऊ स्व. श्री बृजमनोहर नाथ भटनागर के स्नेह संरक्षण में पले बढ़े। आरम्भिक शिक्षा फूलों की घाटी जोशी मठ में हुई फिर मिडिल से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा सहारनपुर में मिली।

चाचा श्री रामेश्वर नाथ भटनागर की पेंन्टिंग व खूबसूरत हैंडराइटिंग से आकर्षित होकर अनुपम भी पेंन्टिंग करने लगे और चाचा से बाकायदा राइटिंग के गुण सीखे। स्कूल में खेलकूद का ज्यादातर वक्त रंगों से खेलकर ही बीतता था। तीसरी, चौथी कक्षा में पढ़ते हुए ही फूलों, पत्तियों व मसालों के रंग बनाकर सबकों अचम्भित कर देते थे। युवा होते-होते रंगों से छेड़छाड़ के चलते रिश्ता और प्रघाढ़ हुआ। घरवालों के विरोध के बावजूद अपने ड्राईंग अध्यापक की मदद से इस रिश्ते को कायम रखा और इस विधा में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इन्हीं दिनों जीवन संगिनी के रूप में नम्रता ने नाता जुड़ा। रंगों से अनुपम के गहरे रिश्तों के बावजूद पिछले पच्चीस बरस से नम्रता जी इनसे बखूबी निभा रही हैं। आगामी 26 मई को वे अपनी शादी की सिलवर जुबली मनाने जा रहे हैं।

बहुत कम लोग जानते हैं कि आज चित्रकला की दुनियां में बड़े दाम वाला बड़ा नाम बन चुके अनुपम भटनागर ने कभी अपनी पढ़ाई, कैनवास रंग व ब्रश का खर्चा निकालने के लिए खूब ट्यूशनस पढ़ाई हैं। एम.ए.के दौरान कॉलेज के छात्र प्रेसिडेन्ट रहने के बावजूद भी खुद को संयमित रखा और व्यर्थ समय न गंवाकर चित्र साधना में लगे रहे और अनुपम बन गए।अनुपम आज अजमेर स्थित डीएवी कॉलेज में ड्राईग प्रोफेसर के रूप में छात्रों के प्रिय अध्यापक है। शिक्षण की जिम्मेदारी निभाने के साथ 'आकार' गु्रप व आर्ट टीचर्स की संस्था वीएएसटी के शीर्ष पदों को सुशोभित कर रहे है। देश-विदेश में इनके चित्रों की अनगिनित एकल व ग्रुप प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं।

लोग इनके बारे में कितना जानते हैं और जानना चाहते हैं इसका अंदाजा केवल इसी से लग जाता है कि इंटरनेट की दुनियां के सबसे बड़े सर्च इंजन 'गूगल' पर हिन्दी में डा. अनुपम भटनागर का नाम टाइप करने पर पहले पृष्ठ के सभी 10 स्थानों पर इन्हीं का वर्णन मिलता है। जाहिर है इस व्यक्तित्व की देखरेख में अब 'मूमल' के ब्लॉग भी 'अनुपम' होंगे।