शनिवार, 17 सितंबर 2016

Artist Ajit Koul. चित्रकार बनने के लिए ही जन्मा था अजीत कौल.

कुछ लोग पैदा होने के बाद चित्रकार बनने का सोचते हैं और कुछ पैदा ही चित्रकार बनने के लिए होते हैं। चित्रकार अजीत कौल का जन्म भी केवल चित्रकार बनने के लिए ही हुआ था। प्रकृति व जीवन के विभिन्न रूपों को अपनी तूलिका से कैनवास पर सजीव करना अजीत का काम नहीं, जुनून था, या यूं कहिए कि यही मकसद था, जिन्दगी का...। अजीत की जिन्दगी को उसके लक्ष्य को प्रकृति पूजक बनाने के लिए शायद विधाता ने उसके जन्म स्थान के रूप में प्रकृति के सिरमौर कश्मीर को चुना।

कहते हैं कि वियोग के बिना प्रेम की सार्थकता नहीं। कश्मीर से निष्कासन के दर्द ने, जन्म भूमि से वियोग ने अजीत की कृतियों में प्रेम व वियोग की उस कैमेस्ट्री को रच लिया जो बिरले ही किसी कृतिकार के चित्रण में मिलती है।
अजीत की कृतियों में जहां प्रकृति के यौवन का निखार मिलता है, वहीं प्रेम की प्यास और वियोग का दर्द भी। अजीत के जीवन चरित्र व स्वभाव और उनकी कृतियों की तुलना करें तो दोनों एक-दूजे की अनुकृतियां ही नजर आते हेैं। बिंदास अन्दाज, बात-बात में खुलकर ठहाके लगाना, चित्रकारी सीखने वाले बच्चों से भी मित्रवत व्यवहार, सबसे समरसता और जन्म स्थान से बिछोह के दर्द के साथ जीवन संघर्ष के कड़वे अनुभवों को बहुत ही लापरवाही से सिगरेट के धुएं के साथ उड़ा
देने की आदत। यही सब कुछ तो अजीत के चित्रण में अनुकृति के रूप में मौजूद है।
विशुद्ध रूप से चित्रकार 
अजीत ने कई सीरीज पर काम किया-पैराडाइज लॉस्ट, तलाश, वापसी, अ पथफाइण्डर, लम्हे, मिर्जा गालिब इत्यिादि। इन तमाम सीरीज पर अजीत ने कलाप्रमियों की खुलकर दाद बटोरी साथ ही अच्छी कीमत देकर लोगों ने अजीत की पेंटिंग्स को अपने घर की रौनक बनाया। अजीत एक ऐसे कलाकार थे जो विशुद्ध रूप से कलाकार ही थे। अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने कभी किसी दूसरे काम का सहारा नहीं लिया। उनका ओढऩा, खाना, अपना सुख-दुख बांटना और जीवन संघर्ष से पोजिटिव एनर्जी खोज कर संसार भर में प्रसारित करना, सब का माध्यम पेंटिंग ही थीं।
वास्तु सम्मत बांस
यूं तो अजीत ने विभिन्न विषयों पर अपनी तूलिका चलाई, लेकिन उन्हें अपने बांस का चित्रण विशेष रूप से पसंद था। उनका कहना था कि, ‘मैं अपने भीतर छुपे भावों की अभिव्यक्ति जीवन संघर्ष के पर्याय माने जाने वाले बांस से करता हूं। मेरी नजर में बांस, शक्ति व प्रेम का का प्रतीक है। जिस प्रकार बांस ऊपर से कठोर परन्तु भीतर से लचीली प्रवृति का होता है। समय की मांग के अनुरूप जैसे बांस अपना लचीला रूप प्रदर्शित करता है, उसी प्रकार इस संसार में हमें भी करना चाहिए।
अजीत ने विशेष रूप से बांस के विभिन्न रूपों को तो चित्रित किया ही है साथ ही उनके द्वारा चित्रित सभी प्रकृति चित्रण में वादियां हो या पहाडिय़ा, चिनार हो या फूलों के झुरमुट लेकिन बांस ने भी स्थान पाया है।
बांस को अपने चित्रण में प्रमुखता देने के कारण को विस्तार से बताते हुए अजीत यह भी कहते थे कि, ‘पतला, लम्बा बांस अपनी लचक और दृढ़ता के चलते बड़े से बड़े तूफानों को उन्हीं की दिशा में ढलकर उन्हें मात दे देता है। तूफान गुजर जाता है और बांस बिना किसी हानि के फिर से तनकर खड़ा हो जाता है। यही बांस है, जिसे भगवान राम ने धनुष के रूप में अपनाकर दानवों का संहार किया तो श्रीकृष्ण ने बांसुरी के रूप में अपनाकर दुनिया को प्रेम का संदेश दिया।’
बांस की कोमलता, दृढ़ता ओर उसकी शक्ति के साथ उसके निरन्तर बढऩे की प्रवृति के कारण उसकी पोजिटिविटी को घर में स्थान देने के लिए वास्तु शास्त्री भी बांस की पेंटिंग्स को घर में लगाने की सलाह दिया करते हैं।
पैराडाइज लॉस्ट
2007 में प्रदर्शित अपनी सीरीज ‘पैराडाइज लॉस्ट’ की 36 पेंटिंग्स में अजीत ने कश्मीर को, उससे जुड़ी यादों को, और स्वर्ग की उस वादी के साथ वहां बिताए अपने सुन्दर पलों को पूरी शिद्दत के साथ साकार किया। इन चित्रों में कश्मीर की खूबसूरती को समेटे डल झील है, चिनार के पेड़ हैं, गहराती वादियां हैं, धुंध भरा समा है, ठंड को समेटने के लिए बेताब कांगड़ा और समावर है तथा साथ में हैं वो यादें... जो बचपन को ताजा और यौवन को सजीव कर जाती हैं।
वापसी
अपनी सिरीज ‘वापसी’ में अजीत ने एक ऐसे कश्मीर की कल्पना की है जहां का माहौल शान्त है। जहां चिनार हवा के साथ मिलकर प्रेम की ध्वनियां प्रसारित कर रहे है, जहां झील का शांत बहता पानी मल्लाह के साथ मिलकर बड़ी शिद्दत के साथ बिछुड़े हुओं को घर वापसी का न्यौता दे रहा है। हवा, पानी और खिले हुए चेहरों के साथ बहती खुशियां कश्मीर को वास्तव में स्वर्ग का दर्जा दे रही हैं।
तलाश
अपनी सिरीज ‘तलाश’ में अजीत ने यह बताने की कोशिश की है कि जिन्दगी तलाश से शुरु होती है और तलाश के साथ ही खत्म हो जाती है। कुछ लोगों की तलाश अपने मुकाम तक पहुंच कर पूर्णता को प्राप्त होती है तो कुछ लोगों की तलाश अधूरी रह जाती है। देखा जाए तो जिन्दगी अपने आप में तलाश की ही एक प्रतिकृति है। अपनी इस सिरीज के बारे में बताते हुए 2009 की दिसम्बर की एक शाम अजीत ने कहा था कि, ‘कई लोगों को अपनी तलाश के मुकाम के बारे में खबर नहीं होती, लेकिन तलाश जारी रहती है। इन पेंटिंग्स में मैने लाईट व डार्क कलर्स का कॉम्बिनेशन किया है। लाइर्ट कलर इस बात का प्रतीक है कि दिमाग में तलाश की जो छवि है, वह स्पष्ट नहीं है, लेकिन जैसे ही डार्क कलर सामने आता है तो प्रतीत होता है कि छवि पहले से ही स्पष्ट है।’ एक पेंटिंग में अलग-अलग कलर के ब्लॉक के जरिए चित्रकार ने तलाश के दौरान व्यक्ति के दिमाग में चल रहे विचारों और उससे उत्पन्न कन्फ्यूजन्स को दर्शाया है। यह सीरीज सेमी एब्स्ट्रेक्ट शैली में बहुत ही खूबसूरती के साथ चित्रित की गई है जो किसी भी देखने वाले को पेंटिंग्स में अपनी तलाश खोजने के लिए बाध्य कर देती है।
लम्हे
‘लम्हे’ अजीत की सीरीज तलाश की ही अगली कड़ी है। इसमें चित्रकार की तलाश ने कुछ अधिक स्पष्ट होते हुए स्त्री के मुख को धारण किया है। चित्रकार ने अल्हड़ प्रेम को साकार किया है जो लडक़पन की पहली चाहत के रूप में कसक बन कर उबरता है और प्रेम का ठंडा सोता बन कर जीवन को निहाल कर जाता है। पेंटिंग्स क्या हंै, बस किसी को भी अपने जीवन में बहार बनकर आई मोहब्बत के दिलकश पलों की याद ताजा करवा जाती है।
मिर्जा गालिब
अजीत का रुझान जितना चित्रण की ओर था उतना ही लेखन की ओर भी। अजीत की डायरियों में आज भी उनके लिखे शेर और कविताएं मन को बांध लेती हैँ। अजीत के प्रिय शायर रहे हैं मिर्जा गालिब। अपने प्रिय शायर की लेखनी को चित्ररूप में बांध कर अपनी भावनाएं व्यक्त करने का साहस अजीत के अलावा भला कौन कर सकता है। ‘मिर्जा गालिब’ सीरीज में अजीत ने शायर के चुंनिंदा शेरों को कैनवास पर साकार कर दिया है। चित्रों के साथ लिखी शायरी चित्र का वजन बढ़ा देती है। जैसे अजीत ने इस सीरीज में एक घर की दीवार पर उगी हुई घास को चित्रित करते हुए इस शेर को साकार कर दिया है कि,
‘कोई वीरानी सी वीरानी है,
दश्त को देखकर घर याद आया।’
अपनी इस सीरीज में अजीत ने गहरे लाल व काले रंग का प्रयोग करते हुए अपने दुसाहसी होने का परिचय दिया है। इस सीरीज की एक-एक पेंटिंग इतनी खूबसूरत है कि समझ में नहीं आता कि किसे सर्वश्रेष्ठ मानें।
ए पथफाइण्डर
अजीत की एक और खूबसूरत सीरीज है ‘ए पथफाइण्डर’। इस सीरीज के प्रदर्शन से पहले ही अजीत को दुनिया से विदा होना पड़ा, लेकिन अजीत की बुक करवाई हुई तारीखों पर उनकी जाबांज पत्नी पूर्णिमा कौल ने यह सीरीज प्रदर्शित कर ना केवल चित्रकार की ख्वाहिश पूरी की वरन् पति के प्रति अपने प्रेम व फर्ज की भी मिसाल कायम की। इस सीरीज में मिक्स मीडिया के साथ एब्स्ट्रेक्ट फॉर्म का प्रयोग दिलचस्प है। सूखे दरख्तों के बीच अपनी राह खुद तलाशता पथ मन को कहीं दूर विचरने के लिए ले जाता है। सूखे दरख्त, हरी-भरी वादियां, झील की शान्ति और बहुत कुछ, जहां अपना पथ तलाशता फाइण्डर अजीत कहीं दूर निकल गया और छोड़ गया अपने पीछे अपने चित्रों के रूप में अपनी मौजूदगी का खूबसूरत अहसास।
...उन्मुक्त उड़ान
जीवन संघर्ष को महान बनाने वाल अजीत ने चित्रकारी की लुप्त होती विधाओं को भी समेटा, उस पर काम किया और उसे प्रदर्शि करने का दु:साहस भी दिखाया। सन् 2008 में जब उन्होंने स्टिल लाइफ पर आधारित चित्रों का प्रदर्शन किया तब जिज्ञासुओं को यही जवाब दिया कि, ‘मैं नहीं चाहता कि यह विधा केवल फाइन आर्टस के सिलेबस तक सिमट कर ना रह जाए।’ इसके साथ ही उन्होंने छापा तकनीक पर भी काफी अच्छा काम किया, खासकर लिथो प्रिंटिंग और लिनोकट पर।
अजीत के चित्रों के खरीददारों के लिए सबसे अच्छी बात है उनकी खूबसूरती, चित्र के साथ किसी को भी बांधने की क्षमता और सबसे खास बात ऑयल कलर में चित्रण जो चित्रों को दीर्घ जीवन देता है।
आज अजीत हमारे बीच नहीं, बहुत ही कम संख्या में उनके चित्र उपलब्ध है, क्योंकि अधिकांश उनके जीवित रहते कला प्रेमियों के घर की शोभा बढ़ा चुके हैं। उनकी इस अनमोल धरोहर को संजोने के लिए किसका भाग्य प्रबल रहेगा वक्त की बात है। निधियां सीमित हैं और संजोने वाले लोगों की संख्या भी जाहिर बात है सीमित ही रहेगी।
चित्रकार ने आसमान को नापा , उसकी ऊंचाईयों साथ बराबर की उड़ान भरी और अधिक उड़ान भरने की वाहिश को कुछ यूं व्यक्त कर गया कि,
जो तुम देखना चाहो मेरी उड़ान को,
ऊंचा कर दो और आसमान को।
अनुरोध: ....और पेंटिग्स जुटा रहें हैं, जल्द ही प्रकाशित करेंगें 
आप के पास भी अजित कॉल का काम हो तो हमें बताएं प्लीज़....  

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